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रविवार, 3 जुलाई 2022

तुम अगर तुम हो तो क्या तुम हो ?

तुमने मुझे अपना समझा ? या नहीं समझा ।
तुमने मुझे दिल से चाहा ? या नहीं चाहा ।
इन बातों से मुझे न तो कोई फर्क पड़ता है और
न तो मुझे कोई परवाह है ।
अगर मुझे फर्क पड़ता है । अगर मुझे किसी बात की परवाह है तो सिर्फ इस बात की , 
कि मैंने तुम्हें चाहा है और वो भी बे पनाह.....
दिल की गहराइयों से ........... ।

मुझे तुमसे कुछ पाने की लालच नहीं है ।
सच तो यह है कि मैंने तुमसे कुछ हासिल करने की कभी कोई ख्वाहिश ही नहीं रक्खी ।

छल करना तुम्हें आता होगा, मुझे नहीं
तुम छलावे में आ सकते हो लेकिन मैं नहीं
मुझे तुमसे कोई छल नहीं करना 
लेकिन हां तुम्हें एक दिन मैं यह एहसास जरुर करा दुंगा कि चाहत किसे कहते हैं ?
और किसी को दिल की गहराइयों से चाहना क्या होता है ।

तुम , अगर तुम हो तो क्या तुम हो ?
मैं , अगर मैं हूं तो क्या मैं हूं ?
इसे सिर्फ साबित ही नहीं , बल्कि एहसास भी करा दुंगा कि मुझमें और तुममें फर्क क्या है ? 
और क्युं है ।