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शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

सवाल और जवाब

मैंने तो सिर्फ एक सवाल ही किया है ।

अब उसपर लोग बहसबाजी करना शुरु कर देते हैं । कुछ लोग तो अपने ही सवाल खड़े कर देते हैं और खुद ही जवाब भी देना शुरु कर देते हैं ।

कुछ लोग तो सवाल को हीं गलत साबित करने में लग जाते हैं । कुछ लोग सवाल का जवाब ऐसे देते हैं जो समझ से बाहर हो जाता है  ।  कुछ लोग तो ऐसा जवाब देते हैं , जो सवाल से उनके जवाब का कोई संबंध ही नहीं रखता , कुछ लोग जवाब न दे कर कहानियां सुनाने लग जाते हैं  ।

आज इस दौर में सब को कुछ न कुछ बोलना जरूरी हो गया है । खामोशी साधे हुए किसी के विचारों को या किसी की भावनाओं को सुनना बोझ लगने लगा है ।

सभी अपनी - अपनी काबिलियत पेश करना सुरु कर देते हैं । मैंने तो एक लाईन का सवाल पूछा है बस । आप सिर्फ मेरे सवाल का जवाब दीजिए मुझे कहानियां मत सुनाइए , अगर मैं संतुष्ट हो जाऊंगा तो ठीक , वर्ना मैं खुद कहुंगा कि मैं अपने सवाल पर मिलने वाले जवाब से संतुष्ट नहीं हूं  , यहां उपस्थित लोगों में कोई और अगर जवाब दे सके तो दे सकता है ।

ज्यादातर लोग ऐसे भी होते हैं जो सवाल की जगह ऐसी बातें सुनाने लगते हैं कि सवाल करने वाला अपने सवाल को भूल जाता है और वहां मौजूद लोग भी सवाल को भूल जाते हैं ।

आगे चलकर यह बात फिर एक बार उठती है कि यह बात किस बात पर शुरू हुई थी । सवाल क्या था ? किसी को याद नहीं । जवाब देने वाले को भी याद नहीं । सुनने वालों को भी याद नहीं और सवाल पूछने वाले को भी याद नहीं ।

आखिर यह सब क्या है ?

यह सब सिर्फ अपनी काबीलियत जाहिर करने की होंड़ है और कुछ भी नहीं है । अपनी काबिलियत में लोगों को अपने दिशा से भटकाना , सवाल करने वाले को उसके सवाल से भ्रमित कर के उल्झा देना । जिसमें सिर्फ समय बर्बाद होता है । ऐसे लोगों से या तो बचें या फिर उन्हें बात करने का सही तरीका क्या होता है यह बताएं । लगभग 95% पंचानबे पर्सेंट लोगों को बात करने का सही तरीका ही नहीं मालूम है ।

एक आदमी अगर किसी बात को शरु करता है ,  तो उसकी बात पूरी सुने बगैर ही , दूसरा आदमी पहले वाले आदमी की बात काट कर अपनी बात पेश कर देता है । 

चुपचाप रह कर सुनने को कहा जाए तो यह कहते हैं कि मुझे इनकी इस बात पर एक बात याद आ गई है उसे सुना दे रहा हूं वरना मैं भूल जाऊंगा ।

अगर इतना ही यादास्त कमज़ोर है तो बात करने की जरुरत ही क्या है ? चुपचाप बैठे रहना चाहिए लेकिन ऐसे ही लोग होते हैं कि जो किसी बात चित या बैठक को अंतिम मुकाम तक पहुंचने नहीं देते हैं ।

जब कि यह सभ्य आदमी का काम नहीं है सभ्यता और समझदारी इस बात में है कि जबतक पहले वाले व्यक्ति की बात पूरी न हो जाए तब-तक किसी के बातों के बीच में अपनी कोई बात नहीं पेश करना चाहिए ।

ऐसी परिस्थितियों में बात काटने वाले को प्रेम से एक बार समझा देना जरुरी होता है ।

अगर मान जाते हैं तो उन्हे अपने बीच बैठाएं  , सभ्यता आ गयी  हो तो आवश्यकता पड़ने पर खुद भी उनके बीच बैठें अगर इसके बाद भी कोई अपनी आदत से मजबूर हो तो समझदारी इस बात में है कि आप खुद ही चुप रहें अपना कोई सवाल ही न पेश करें ।

मूकदर्शक बने सुनते रहिये यह भी एक कला है ।

इसमें भी जानकारियां प्राप्त होतीं हैं और लोगों की परख भी होती है । आप की खामोशी जब लोग तोडवाएंगे तो आप की हर बात लोगों पर बीस पड़ेंगी क्यों कि आप ने खामोशी पुर्वक सभी के बातों को सुना है और सभी के जज्बातों को समझा है । इस लिए आप की बातें ही निर्णायक होंगी  ।


आशा करता हूं कि आप को मेरे लेख पसंद आए होंगे फिर भी यदि आप को कोई सुझाव देना हो तो कमेंट बॉक्स में जा कर दे सकते हैं । ब्लॉग को फालो करने और कमेंट करने से मुझे प्रेरणा प्राप्त होगी ।