Translate

शनिवार, 31 जुलाई 2021

फोन लगाने में प्राब्लम न हो सके

एक्सिडेंट , मर्डर , और गले से सोने के आभूषण खींचने वालों के भागने की स्पीड क्या हो सकती है इसकी कल्पना मैं ,आप या कोई भी कर सकता है ।
इनमें से कोई भी घटना अगर घटती है तो आप यदि यह चाहें कि मैं भी उसी स्पीड से किसी को फोन कर के सूचित कर दूं तो यह संभव नहीं है ।
क्यों कि जब आप फोन करते हैं तो सबसे पहले आप को प्रचार सुनाया जाता है । प्रचार के बाद ही पता चलेगा कि अगला व्यक्ति नेटवर्क कवरेज क्षेत्र के अंदर है या बाहर , यदि नेटवर्क क्षेत्र में है और फोन लग गया तो यह भी जरूरी नहीं है कि अगर इधर से आवाज़ सही जा रही है तो उधर से भी सही आवाज आएगी ही , फिर भी लोग तीन पांच कर के किसी तरह से अपनी बात कर ही लेते हैं ।
सबसे बड़ी बाधा तो प्रचार-प्रसार वाली है ।
क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि जैसे प्रचार को हम सभी लोग टीवी चैनल पर देखते हैं जो नानस्केबिल होता है इसे आप अपने रिमोट से भगा भी नहीं सकते वैसे ही फोन कट होने के बाद कोई भी प्रचार हो उसे टेक्स्ट और वीडियो के माध्यम से एस,एम,एस कर दिया जाय ताकी किसी को भी फोन लगाने में प्राब्लम न हो सके ?

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

स्वयं का अनुभव

कोई भी मामला हो , चर्चा हो , या विचार हो , तो सबसे पहले उसका आत्ममंथन किया जाना चाहिए , फिर स्वयं में बौद्धिक तर्क - वितर्क किया जाना चाहिए , फिर उसपर प्रेक्टिकल किया जाना चाहिए , तब जो निष्कर्ष निकलता है उसे स्वयं का अनुभव कहा जाता है ।

बुधवार, 28 जुलाई 2021

अपनी सुरक्षा के साथ ही साथ अपने लोगों की सुरक्षा स्वयं करें

बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के लिए उनकी उम्र और वज़न के हिसाब से खाने और पीने की चीजों में कैलोरी और पौष्टिकता पर विषेश ध्यान दिया जाना चाहिए , अन्यथा कुपोषण के अतिरिक्त कई बिमारियों के शिकार हो जाते हैं लोग । खाने में कितनी कैलोरी और कितनी पौष्टिकता होनी चाहिए ?
खाने का समय , 
नाश्ते का समय , 
चाय पान के समय पर अब बहुत कम लोगों का ध्यान रह गया है ।
सबसे ज्यादा समय और सबसे ज्यादा लोगों की जिंदगी में स्थान अब दवाओं ने ले लिया है ।
लोगों को यह भय और एहसास हो चुका है कि , मैं खाने के बगैर दो-चार टाईम तो जरुर जी सकता हूं लेकिन दवा के बगैर एक टाईम भी नहीं ।
एक वक्त था जब डाक्टर्स लोगों को उनके गंभीर बिमारियों को न बताकर बल्कि उनको संतुष्टी पुर्वक तसल्ली दिया करते थे , ताकी पेसेंट अपनी बीमारी को जान न पाए , वर्ना वह डर कर घबराने लगे गा । गंभीर बीमारियों को पेसेंट के करीबी लोगों से ऐसे बताया जाता था कि पेसेन्ट को एहसास भी न हो कि उसके बीमारी के बारे में चर्चा किया जा रहा है लेकिन आज पैसा कमाने के लालच में , लोगों को डराया जा रहा है । जिसका नतीजा यह है कि बिना ह्रदय रोग के वे ह्रदय के रोगी हो जा रहे हैं ।
तमाम लोगों को हर्ट अटैक भी हो जाता है ।
कुछ लोग न्युरो के मरीज भी हो जाते हैं ।
बस स्टेशन पर , रेलवे स्टेशन पर , गाड़ियों में तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर मैंने देखा है कि वहां लिखा हुआ है ।
अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें जब कि यह दौर ऐसा चल रहा है कि अपने सामान से ज्यादा अपनी सुरक्षा स्वयं करें । आप जब-तक अपनी सुरक्षा स्वयं नहीं करेंगे तब तक आप की सुरक्षा कोई दूसरा नहीं कर सकता है ।
आप अपनी सुरक्षा के साथ ही साथ अपने लोगों की सुरक्षा स्वयं करें ।

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मैं सिर्फ इतना जानता हूं

मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि , "तुम मेरे हो ; - मेरी हर धड़कन में तुम्हारी खुशियों की चाहत , और सांसों में दुआएं बसी रहती हैं । अब तुम मुझे जो भी समझो , उसका मुझे कोई परवाह नहीं ।

सोमवार, 26 जुलाई 2021

तुम भी बेइज्जत हो जाओगे

जब इज्जतदार की इज्जत बचाओगे , तो तुम्हारी भी इज्जत बढ़ जाएगी , और जब बेइज्जत लोगों की इज्जत बचाने की कोशिश करोगे , तो तुम भी बेइज्जत हो जाओगे ।

रविवार, 25 जुलाई 2021

पुर्वांचल बैंक/ बड़ौदा यूं ,पी , बैंक शाखा आशिक रौजादरगाह , गोरखपुर ।

पुर्वांचल बैंक , जो वर्तमान में बड़ोदा यूं ,पी , बैंक के नाम से हो गया है । यह शाखा धुरियापार के नाम से पास थी और धुरियापार में लगभग बीस साल से ऊपर तक सकुशल चली भी , लेकिन कुछ दलाल और उस समय के शाखा के कार्यकर्ताओं ने मिल कर इस शाखा को अब धुरियापार से हटा कर आसिक रौजादरगा में स्थापित करवा के चलाया जा रहा है ।
जिससे जनता के बीच भय और गुस्सा दोनों व्यप्त है ।
धांधलेबाजी , अनियमितता , ग्राहकों को फटकारना , अनाप-शनाप बोलना , रोज के दिनचर्या में शामिल हो चुका है । 
कुछ दिन पहले ही मैंने न्यूज पेपर में और मोबाइल मिडिया द्वारा संचालित न्यूज चैनल पर पढ़ा था कि उरुवा बाजार में चल रहे पुर्वांचल बैंक के एक कर्मचारी ने एक बूढ़ी औरत जो उस बैंक की खातेदार थी उसे भद्दी गालियां देने के बाद थप्पड़ों से पीटा ।
धुरियापार के ब्रांच से ऐसी घटना अभी नहीं आई है लेकिन बैंक के ग्राहकों को फटकारना काम न करना इसके अतिरिक्त निम्नलिखित समस्याएं भी हैं जैसे-
1- काउंटर पर लगी महिला/पुरुष की लाईन के अतिरिक्त जिन लोगों की कर्मचारियों से पहचान होती है , उनके पैसे निकाल कर केबिन में ही ला कर पहुंचा दिए जाते हैं । इन लोगों को लाईन में लगकर पैसे निकालने की जरूरत नहीं पड़ती । बाकी के ग्राहकों को बन्दर बने खामोशी से इन हरकतों को देखना पड़ता है ।
2- कर्मचारियों के उपर निर्भर करता है कि वो किसका काम करेंगे और किसका नहीं ।
किसे चाय पिलाएंगे और किसे नहीं । जब कि सभी ग्राहक एक समान होते हैं ।
3- कुछ पूछने पर उनकी मर्जी पर निर्भर करता है कि वो बार - बार दौड़ाएंगे या तुरंत जवाब दें ।
4- शिकायत पेटिका लगी हुई है , उसमें शिकायत डालने पर भी कोई कार्यवाही नहीं होती । ऐसा लगता है कि वह शिकायत पेटिका सिर्फ कोटा पुरा करने के लिए , नाममात्र के लिए लगाया गया है ।
5- निकासी और जमा बाउचर पब्लिक काउंटर पर कभी रक्खी जाती है , तो कभी नहीं ।
6- जब बाउचर पब्लिक काउंटर पर उपलब्ध होती है तो उसके साथ पेन , गोंद , और अंगुठा लगाने का पैड  नहीं होता , जिसके लिए ग्राहकों को घंटों इनके पास उनके पास भटकना पड़ता है ।
7- जो लोग पढे लिखे नहीं हैं उनका फार्म भरने वाले की कोई व्यवस्था नहीं है ।
19-7-2021 दिन सोमवार को मैं अपने एक मित्र के साथ उनके काम के सिलसिले में बैंक में गया था , कैश काउंटर पर बैठे कार्यकर्ता से मैंने पूछा - 
सर इस  पासबुक को चेक कर के बताएं कि इसमें कितने पैसे हैं ।
महोदय ने जवाब दिया कि सिर्फ जमा और निकासी का काम होगा ।
मैंने पूछा तो चेकिंग का काम कब होगा ?
महोदय ने कहा कि चार दिन बाद ।
मैंने सोचा कि अगर इसमें कुछ जमा या निकासी कर ली जाए तो शायद एकाउंट के बैलेंस का पता चल जाय ।
मेरे मित्र सिर्फ बैलेंस जानने की लालच में कुछ पैसे निकाले और फिर महोदय से मैंने पुछा कि -सर अब कितना बैलेंस बचा हुआ है ?
महोदय ने स्पष्ट जवाब दिया कि - आज बैलेंस चेक करने का काम नहीं हो रहा है ।
मैंने सोचा कि जब मित्र ने पैसा निकाल लिया तो इतनी छोटी सी बात बताने में प्राब्लम क्या है ?
जबकि जमा और निकासी की प्रक्रिया एकाउंट से हो कर ही गुजरती है । बैलेंस न बताना ये मनबढ़ई नहीं तो फिर और क्या है ?
8- बैंक में कौन-कौन से कार्य होंगे उसकी अलग-अलग काउंटर बनी हुई है जिसमें एक केबिन पासबुक से पैसे विड्रा होने वाला बाउचर , एकाउंट की समस्त जानकारी एवं पासबुक प्रिंटिंग का भी कार्य किए जाते हैं
मगर इस केबिन में कभी कोई उपस्थित नहीं रहता । हमेशा खाली पड़ा रहता है ।
9- घूसखोरी और दलाली एक महत्वपूर्ण कार्य योजनाओं में शामिल है ।
10- दिन में ही शाखा में आंन डियुटी शराब का सेवन करना बहुत ही मामुली बात है ।
11- यह ब्रांच बीस वर्ष से ऊपर सर्व प्रथम मेरे ही मकान में संचालित था , जिसमें बहुत सारी चीजों को मैंने अपनी आंखों से देखा है । जिस वक़्त मेरे मकान से ब्रांच खाली हुआ उस समय मेरे द्वारा लगवाये गये सीलिंग फैन चार पीस
दो पीस सप्लाई बोर्ड को दलाल लोग नोच ले गए , जब मैंने ब्रांच के कार्यकर्ताओं से पूछा तो उन लोगो ने बताया कि हम लोग वहीं छोड़ आए हैं । लाकर रुम- जिसमें कैश और महत्वपूर्ण कागजातों को रक्खा जाता था , उसमें से मैंने एक बोरा देशी और अंग्रेजी शराब की बोतलें फेंकवाई है ।
उस समय मुझे पता चला कि ये लोग डियुटी पिरियड में ही नशा करते हैं , जब कि नशे की हालत में मैंने कई कर्मचारियों को अपने मकान वाले ब्रांच में भी पाया था और आज जहां स्थित है वहां भी पाया है । अब आप स्वयं विचार करें कि नशेड़ियों से आप कैसे व्यवहार की आशा कर सकते हैं ।
इन्हें तो सिर्फ दलालों का इंतजार रहता है कि कोई मुर्गा फंसा कर लाए जिससे पार्टी , दारु और मोटी रकम भी प्राप्त हो जाएगी ।
कुछ दलाल लोन वाले केबिन में लोन मैनेजर के समकक्ष बैंक खुलने से लेकर बन्द होने तक पुरी डियुटी करते हैं , जिन्हें पुरा स्टाफ उसे भी एक कर्मचारी की ही तरह व्यवहार करता है ।
12- न कोई प्रेस रिपोर्टर तफ्तीश में कभी जाता है और न कोई अन्य जांच होती है । समस्याओं को लेकर जनता जाए तो कहां जाए और जा कर भी क्या कर लेगी ।
13- पासबुक प्रिंट करने वाली मशीन हमेशा गड़बड़ ही रहती है । पासबुक प्रिंट का कार्य तो कभी होता ही नहीं ।
या फिर पासबुक प्रिंट न करने का बहाना हो ।
14- कुछ कर्मचारी ठीक हैं जो खातेदार को खातेदार समझते हैं मगर अपने से ऊपर के कर्मचारियों के दबाव और पहुंच से मजबूर हो जाते हैं ।

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

जब कोई उम्मीद न रह जाए

जब नौकरी मिलने की कोई उम्मीद न रह जाए ।
जब स्कूल खुलने की कोई उम्मीद न रह जाए ।
जब धन्धा बिजनेस करने की कोई आजादी न रह जाए ।
जब लोगों से लोगों को भय लगने लग जाय ।
जब गांव के चौपाल में और गली के मोड़ पर दस लोग इकट्ठे हो कर आपसी हंसी-मजाक और मस्ती न कर पाएं ।
ऐसे में जब सारी उम्मीदें , सारे रास्ते बंद होने जैसे लगने लगे ।
तब ये समझना की ये भी एक प्रलय के ही समान है , चाहे छोटा प्रलय हो या बड़ा । जिसके ऊपर जैसी बीतती है उसे बेहतर एहसास होता है ।
ऐसी परिस्थिति , ऐसे दौर में जीने की आशा न कर के बल्कि लोगों के काम आकर मरना बेहतर होता है ।