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रविवार, 20 अगस्त 2023

दुनियां का सारा निचोड़ तो सिर्फ तुम में ही है

जब तुम मेरे पास होते हो ........... ।
तो न कहीं जाने को मन करता है और न किसी परिचित या मित्र से मिलने का जी चाहता है ।
मन बस यही चाहता है , कि चुपचाप तुम्हारे साथ तुम्हारे पास ही पड़ा रहूं  लेकिन जब किसी का फोन आ जाता है । तब बहुत डिस्टर्बेंस महसूस होता है , और जब कोई मिलने को कहता है । तब तो और भी मन खौल उठता है , लेकिन जब कोई यह कह देता है , कि मैं आप से मिलने के लिए आ रहा हूं । तब तो ऐसा लगता है , कि जैसे मेरी जान ही निकल जाएगी । 
क्या करुं यह सब , तब ही होता है । जब तुम मेरे पास मेरे साथ होते हो............. ।
सोचता हूं कि वह दिन कैसा होगा ?
उस दिन का एक - एक पल कैसा होगा । 
जब तुम मेरे साथ मेरे पास नहीं होगे ।
दुनियां की सारी रंगीनियां ............. ।
दुनियां के सारे ऐशो-आराम ..…....... ।
दुनियां का सारा निचोड़ तो सिर्फ तुम में ही है ।
मेरे बिना हो सकता है कि तुम कुछ हो सकते हो ।
लेकिन तुम्हारे बिना तो मैं कुछ भी नहीं हूं ।
तुम्हारे ऊपर मेरा कोई प्रतिबंध नहीं है....... ।
तुम्हारे ऊपर मेरा कोई दबाव भी नहीं है.......... ।
यह सिर्फ इस लिए है , कि मुझे तुम्हारे ऊपर अटूट विश्वास है , और इससे भी ज्यादा अगर कुछ है । तो वह तुमसे बे पनाह मुहब्बत है ।
ये अलग बात है कि मैं एक जिस्म में हूं , लेकिन 
मेरी हर धड़कन....... ।  
मेरी हर सांसें...... । 
यहां तक कि मेरी जान भी तुम्हारे अंदर ही है ।
मेरा जीना भी तुमसे ही है और
मेरा मरना भी तुमसे ही है ।
तुम्हारे बगैर मैं सिर्फ एक ढांचे की तरह ही हूं ।
मेरे लिए ..... । 
मुझे इस दुनियां में ज़िंदा रहने के लिए ।
तुम्हारा मेरे पास होना ज़रूरी है ।
तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है ।
तुम्हारी ज़रा सी भी उदासी.....। ख़ामोशी..... । और मायुसी..... ।
मेरा सुख चैन सब छींन लेती है ।
जब कभी फुर्सत के वक्त मिले , तो दो मिनट के लिए ही सही मगर एक बार मेरे बारे में भी जरुर सोंच लेना ।
मुझे उम्मीद है कि तुम्हें इस बात का एहसास हो जाएगा , कि तुम्हें मैंने किस नज़रिए से देखा है । तुम्हें अपना क्या समझा है ।
तुम्हें अपने रुह की गहराइयों से क्या महसूस किया है....... ।

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन

कुछ काम भी ऐसे हैं । कुछ बातें भी ऐसी हैं । जिन्हें हम लोगों की नज़रों से छुप - छुप कर करते हैं ।
जहां तन्हाई होती है  । जहां हम अकेले होते हैं  । न तो किसी के होने का भय और न तो किसी के आने कि चिंता  । उस समय आपस की सारी शर्मोहया की दीवारें टूट जातीं हैं । आपस का सारा भय मिट जाता है ।
इस एकांत तन्हाई में निर्भय होकर क्या होता है । इसको हम भी जानते हैं और आप भी जानते हैं ।
यही चीज जब सामाजिक हो जाती है । सभी के संज्ञान में आ जाती है , कि यह दो लोग अब एक सुत्र में बध चुके हैं । अब ये दोनों लोग अपना जीवन अपने हिसाब से जीएंगे । तब हम दोनों एक साथ एक घर में होते हैं  ।
जिस घर में हम होते हैं । उस घर में एक पुरा परिवार भी होता है । जहां सबको पता होता है कि हम दोनों आपस में क्या हैं और फिर हम दोनों सभी के कुछ न कुछ तो लगते ही हैं ।
उस समय बहुत लाज लगती है । जिस समय हम दोनों अकेले एक रुम में होते हैं । यह बात हर पल दिमाग़ में घूमती रहती है , कि इस अकेले पन में क्या हो सकता है  । आखिर यह तन्हाई किस लिए है ? इस बात को तो इस घर में रहने वाले अधिकतर लोग जानते होंगे ।
यह विचार उस तरह की जिंदगी नहीं जीने देता जो जिंदगी पहले के अकेलेपन में था  । जब लोगों से लुका छुपी में  बीत रहा था ।
उस समय हम निर्भय थे । आपस के एक विचारधारा में थे । एक ही सोंच और एक ही ख्याल में थे । तब विचारों के विचलित होने का भी कोई डर नहीं था ।
लेकिन परिवार में तो एकाग्र होना । निर्भय होना । एक सुत्र में बंध कर हर छण को जी पाना संभव ही नहीं हो पाता है ।
क्या इस घरेलू परंपरा से समाज में सभ्यता क़ायम हो सकती है ?
मेरे समझ से शादी तब हो जब अपना निजी घर हो लेकिन ऐसा भारत में पांच पर्सेंट लोग ही कर सकते हैं  । पंचानबे पर्सेंट लोगों को तो अपने पिता के घर में ही रहना पड़ता है  । इस मुआमले में पिता खुद यह चाहता है , कि मेरी पतोह मेरे ही घर में रहे  । जब कि बहुत कम घर ऐसे होते हैं कि जहां छोटा परिवार है  । हमारे देश में अधिकतर ज्वाइंट फैमिली हैं । जिसमें विवाहित लोग भी होते हैं और अविवाहित लोग भी होते हैं  ।
मस्तिष्क है तो सोचना समझना तो सभी को पड़ता है  । कोई भी आज के दौर में  इस परंपरागत बातों से अंजान नहीं है  , फर्क सिर्फ इतना ही है कि सभी लोग खामोशी साधे हुए परंपरागत तरीके से इसे सेलिब्रेट करते हैं  । जब कि यह परंपरा नहीं है , कि हम उसी ज्वाइंट फैमिली वाले मकान में रहें  । आर्थिक अभाव ने इस समस्या को सहते - सहते परंपरा बना दिया है ।
लगभग पंचानबे पर्सेंट लोगों को अपना घर बनाना पड़ता है  , लेकिन तब , जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और आगे वही चीजें वे बच्चे भी झेलते हैं  , जो हम आप अपने पिता के ज्वाइंट फैमिली में झेलते हैं ।
इस लिए हर माता-पिता और हर सास - ससुर को चाहिए कि दहेज़ और दिखावे को त्याग कर उन दिनों को एक मकान की व्यवस्था में सहयोग करें जिससे ये दोनों अपनी जिंदगी अपने शौक , अपनी खुशियों और अपनी चाहतों के मुताबिक जी सकें ।
ऐसा करने से कोई किसी से बिछड़ नहीं जाता है और न तो दूर हो जाता है , बल्कि परिवार , भाई , बहन , रिश्तेदार सभी से लगाव बढ़ जाता है । सभी से आपसी प्रेम और भाईचारा बना रहता है ।
यह खंडित तब हो जाता है  । इसमें नफरत तब पैदा हो जाती है । जब आपसी विवाद कर के हमें या आप को या आने वाली संतानों को अलग-अलग होना पड़ता है ।
सारा जीवन फुर्सत और तन्हाई का समय ढूंढने में निकल जाता है । बिड़ले ही होंगे जिन्हें ऐसा समय मिलता होगा । अगर हया है । लाज और शर्म है तो ऐसे समय का मिलना बहुत बड़ा सौभाग्य के समान होता है अन्यथा आदमी अगर बेशर्म हो जाय तो समय भी है । फुर्सत भी है । उनके होंठों पर चुप्पी भी है जिन्होंने उन्हें इस के लिए मान्यता दी है ।
चाहे बच्चे हों , जवान हों या बूढ़े हों ।
सबको सब मैनेज कर लेते हैं  ।

दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन ।।

बुधवार, 9 अगस्त 2023

एक दिन बिक जाएंगे माटी के मोल

सत्कर्म और कुकर्म अलग-अलग हैं ।
इबादत और पूजा अलग-अलग हैं ।
पुन्य और पाप दोनों अलग-अलग हैं ।
पाप पाया नहीं जाता कमाया जाता है ।
पाप के लिए कुछ करना पड़ता है ।
कुछ पाप अंजाने में होते हैं ।
कुछ पाप जान बूझ कर होते हैं ।
कुछ पाप के हम भागीदार होते हैं ।
कुछ पाप हमें विरासत में मिलते हैं ।
बिना कमाए हुए पाप जो हमें विरासत में मिलते हैं
वो अपने लोगों के कुकर्म की देन है ।
जो कई पीढ़ी पीछा नहीं छोड़ती ।
इसी तरह पुन्य भी कमाया जाता है ।
पुन्य भी विरासत में मिलती है ।
जो कई पीढ़ी तक पीछा नहीं छोड़ती ।
जिस कर्म से लोगों को दुःख पहुंचे और उस दुःख में लोगों के मुंह से बद्दुआ निकले , हाय भी निकले , अभिशाप भी निकले एवं श्राप भी निकले ।
यह निकलना जारी हो जाता है ।
लोगों के हर रोज की बातों में और बातों ही बातों में लोगों के द्वारा दी गई कभी किसी मिसालों में लोग चरित्र हीनता और कुकर्मता का प्रमाण देते हैं ।
ऐसे ही सत कर्म से जब लोगों के हाथ आशिर्वाद के लिए उठ जाएं , जब लोगों के मुंह से दुआएं निकल पड़े , जब लोगों के बीच अच्छाईयों की चर्चा होने लगें , तब भी मिसालों में नाम आने लगता है ।
यह सब कमाई गयी चीजें हैं , जो अपने जीवन से लेकर अपने पीछे आने वाले लोगों तक को मिलती हैं । लोगों के चर्चाओं में भी और लोगों के मिसालों में भी । इस लिए हमेशा इस बात का ध्यान होना चाहिए कि हमारी वाणी और हमारे कर्तव्य किसी को दुखी न करें ।
जब कभी अपनी शिकायत सुनो तो समझ लो कि कहीं कुछ गलती हुई है । यही चीज़ कुकर्मता की ओर ले जाना शुरु करती है । तब अपने सत्कर्म को बढ़ाना शुरु कर दो , जब तुम्हारे कुकर्म का पलड़ा भारी होने लगें तो सत्कर्म का पलड़ा भारी करना शुरू कर दो ।
ये कोई और नहीं करेगा ये तुमसे शुरु हुई है तो तुम्हीं से खतम भी होगी । कहीं ऐसा न हो कि तुम इस दुनियां से चले जाओ और सब अपने आने वाले लोगों के लिए विरासत में छोड़ जाओ और पीढ़ी दर पीढ़ी लोग आप की बातें और मिसालें सुनते रहें ।
एक दिन बिक जाएंगे माटी के मोल ।
जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल ।।