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मंगलवार, 9 जनवरी 2024

डर के आगे जीत है ( सब्र का फल )

नदी के इस पार भी बहुत सारे गांव थे । नदी के उस पार भी बहुत सारे गांव थे । नदी के इस पार सबसे पहला जो गांव था उसकी दूरी नदी से दो किलोमीटर की थी । नदी के उस पार जो सबसे पहले गांव पड़ता था उसकी दूरी नदी से तीन किलोमीटर दूर थी । बहुत दूर - दूर से लोग इस पर से उस पार जाया करते थे और बहुत दूर - दूर से उस पार से इस पार भी आया करते थे । आने - जाने के लिए कोई पुल या सेतुबांध नहीं था । लोग नाव के माध्यम से इस पार और उस पार हुआ करते थे । तब सिर्फ एक ही नाव चला करती थी । जब दस बारह लोग नाव में एकत्रित हो जाते थे तब नाविक नाव को खोलता था । इसके लिए दो आप्शन थे । पहला आप्शन - अगर आप चाहें तो नांव में भी जा कर बैठ सकते हैं परन्तु नांव उसी समय खुलेगी जब यात्री पुरे हो जाएंगे । दूसरा आप्शन - जब दो तीन लोग होते थे तो अक्सर लोग घाट पर ही बालू पर बैठ कर परिचय - पर्वाचा और बातचीत कर के अन्य यात्रियों के इंतजार में समय व्यतीत करते थे । 
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 घाट पर एक आदमी खड़ा था जिससे नाव की दूरी लगभग पचास मीटर से उपर थी मतलब इतनी दूरी थी कि यदि पांच दस लोग आपस में सामान्य तरीके से बात - चीत करें तो वह बात नाविक को सुनाई नहीं पड़ने वाली थी । तभी एक आदमी घाट की ओर आता हुआ दिखाई दिया , पहले से जो आदमी वहां खड़ा था उसने उस व्यक्ति को अपनी ओर आने का इशारा किया वह आगन्तुक करीब आ गया । पहले से वहां मौजूद व्यक्ति ने आगन्तुक से पूछा - कहां जाना है ? 
div style="text-align: left;">आगन्तुक ने जवाब दिया - 
 उस पार जाना है । 
फिर पहले वाले व्यक्ति ने कहा - 
उस पार जाने में जान का जोखिम है । देखो मैं यहां सुबह से खड़ा हूं , लेकिन उस पार नहीं गया , क्यों कि जब मैं यहां आया तो नांव खुल चुकी थी । मैं छूट गया था और यही बालू पर बैठ कर नांव के वापस आने का इंतजार करने लगा । मेरी नज़र नांव पर ही लगी थी , जब नांव बीच धारे में पहुंची तो मैंने अपनी आंखों से देखा कि नाविक ने अपने पतवार से नाव को बड़ी तेजी से डगमगाया जिससे नांव पलट गई और जितने भी मुसाफिर नांव में बैठे थे सब पानी में डूब गए अभी तक किसी की लाश भी उपर नहीं आई है । ये नाविक खूंनी है , बहुत ही खतरनाक आदमी है । मैं तो इसके नांव में नहीं बैठुंगा भले ही यहीं रात काटना पड़े । मेरा काम था आप को बचाना अब आप की मर्जी आप चाहें तो नांव में जाकर बैठ जाएं । लेकिन मैं नहीं जा सकता मैं यही पड़ा रहुंगा । 
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ये सारी बातें सुन कर उस आदमी को भी डर लगने लगा था उसके भी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करुं , तभी दो तीन आदमी और आ गये । उन लोगों को भी इसने बुलाया और नांव को डूबने वाली बात सभी को बताई । इसी तरह धीरे-धीरे पचासों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गयी परन्तु नाविक चुपचाप नांव में बैठा देखता रहा उसके समझ में नहीं आ रहा था कि लोग नांव में नहीं बैठ रहें हैं और भीड़ बढ़ती जा रही है । तभी एक आदमी फिर आता हुआ दिखाई दिया उसने भीड़ को देखा लेकिन वह भीड़ की ओर न जाकर बल्कि नांव की ओर बढ़ा चला जा रहा था । तभी वह व्यक्ति जिसने सभी को रोक कर भीड़ बना डाली थी तेजी से उसके पास पहुंचा और बोला - 
 अरे भाई कहां जा रहे हो ? 
उस पार जाना है । नांव में बैठने जा रहा हूं । तुम कहना क्या चाहते हो जल्दी बोलो मेरे पास समय नहीं है । 
उस आदमी ने भीड़ की ओर दिखाया और सारी कहानी सुनाई लेकिन उस व्यक्ति ने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया दिए बगैर नांव में जाकर बैठ गया और नाविक से कहा कि नांव को खोलो । नाविक ने कहा कि मैं आप को अकेले कैसे लेकर चलूं मेरा खर्चा नहीं निकल पाएगा । तुम नांव खोल कर ले चलो तुम्हारे जितने ख़र्चे हैं वो सब मैं दुंगा । इस बात पर नाविक ने नांव को खोल दिया नांव आगे बढ़ने लगी और भीड़ की नज़र नांव पर टिकी हुई थी । सभी के अंदर इस बात की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि अब नांव बीच धारे मैं पहुंचने वाली है अब तो नाविक इसे डुबा देगा परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ नांव बीच धारे को पार कर चुकी थी । 
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 इस स्थिति को देख कर इस पर लोगों की चर्चाएं गर्माने लगी सभी को ऐसा एहसास होने लगा था कि हमें बेवकूफ बनाया गया है । सभी लोग उस पहले वाले व्यक्ति को तलाशने लगे लेकिन उसका कहीं कुछ पता नहीं नहीं था वह तो अपना काम कर चका था । वह भीड़ को चकमा देकर उसी समय निकल चुका था , जब नाविक ने नांव को खोल कर आगे बढ़ा दिया था । नाविक ने नांव में बैठे व्यक्ति से पूछा - 
साहेब वहां घाट पर काफी भीड़ थी लेकिन आप ने किसी को न तो बुलाया और न ही किसी के आने की प्रतिक्षा की सारा खर्चा स्वयं भरने के लिए सहमत हो गए । 
नव में बैठे व्यक्ति ने कहा - 
उन्हें तुम्हारे नांव से उसपर नहीं जाना था वे लोग किसी के बहकावे में फंसे हुए थे । मेरे पास इतना समय नहीं था कि मैं वहां इकट्ठा हुए लोगों से स्पष्टीकरण मांगू तुम्हारी नांव को खाली देख कर ही मैं समझ गया था कि इन्हें किसी बात की संका है , यात्रा करने वाले नांव में आकर अपनी जगह लेते हैं खड़े रह कर बात नहीं करते इस लिए मैंने भी ध्यान नहीं दिया । 
 नांव अब शाहिल के करीब होने वाली थी नांव में बैठे व्यक्ति ने नाविक से पूछा - 
एकं दिन में कितना कमा लेते हो..... ? 
साहेब उतना ही कमा पाता हूं कि शाम को राशन खरीद कर ले जाता हूं तो पुरा परिवार खाता है और फिर सुबह में सभी लोग खा लेते हैं , मैं भी खा कर नांव चलाने आ जाता हूं ........ । 
कबसे ये काम कर रहे हों ? 
ये काम पहले मेरे दादा जी करते थे , उनके मरने के बाद मेरे पिता जी करने लगे , पिता जी के गुजर जाने के बाद अब मैं करता हूं , क्या करूं साहेब........ । 
क्या तुम्हारे पास खेती भी नहीं है ? 
नहीं साहेब कुछ भी नहीं है तीन पुस्तों से खर पतवार की मड़ई में रहते चले आ रहे हैं । 

 अब नांव किनारे पर आकर रुक चुकी थी दोनों नांव से उतर गए नाविक चुपचाप खड़ा रहा व्यक्ति ने कहा - 
मेरे साथ चलो...... । 
न जाने क्यों नाविक कोई जवाब नहीं दे पाया और चुपचाप उस व्यक्ति के साथ चल पड़ा कुछ देर बाद दोनों एक आलिशान हवेली में प्रवेश कर गए । हवेली पहुंचने के बाद नाविक को पता चला कि यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि एक बादशाह हैं । 
 बादशाह ने नाविक से कहा कि तुम्हारी प्रतिक्षा यहां आकर अब समाप्त हो चुकी है । अब तुम हमारे मंत्री मंडल में मेरे विषेश मंत्री रहोगे , तुम्हें एक बंगला रहने के लिए दिया जाता है और जितना खेती चाहो उसे अपने लिए करवा सकते हो , तुम्हारी नांव हमारे महल में लाने के लिए लोग जा चुके हैं अब वह नांव तब निकलेगी जब मुझे खुद नवकाबिहर करना होगा और उस समय भी नांव तुम्हीं चलाओगे , मेरे आदमी तुम्हारे परिवार को भी लेने जा चुके हैं अब तुम अपने बंगले में जाओ जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं वहां अभी तुम्हारा परिवार भी आ जाएगा ......... । 
बादशाह ने अपने एक दरबारी के साथ नाविक को बंगले पर भेज दिया । 

 निष्कर्ष :----- हमें किसी की बातों में फंसने , उलझनें या बहकावे में आने से पहले सत्यता का पता जरुर कर लेना चाहिए लोगों की देखी देखा में खुद भी अंधविश्वासी नहीं हो जाना चाहिए । अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए दृढ़संकल्पित होना चाहिए । यह सत्य है कि डर के आगे ही जीत है ।

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