हां कुछ वादे किये थे, कुछ किस्में खाईं थीं ।
उन्हीं कस्मों और वादों को मैंने वसीयत मान ली थी ।
जिसकी वजह से आज भी पुरी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभा रहा हूं ।
लेकिन अब मुझे यह एहसास हो चुका है , कि आप मेरे नहीं थे । मेरे होने का झूठा नाटक कर के मुझसे पराए ही रहे ।
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