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गुरुवार, 21 जुलाई 2022

घर का मुखिया

बचपन में सुनता था कि गांव में पटिदारी है ।
वो पटिदारियां पिता जी की थीं , जिन्हें हर अवसर पर पूछा जाता था और खुद भी लोग हमेशा आया जाया करते थे । बड़ी एकता और मोहब्बत थी उस जमाने की पटिदारी में , बिना पटिदारी के राय मशविरा के किसी कार्य को संपन्न कर लेना संभव ही नहीं था।
गांव में सभी पटिदारों का घर ज्यादातर हमारे घर के आस पास में ही था ।
जैसे - जैसे होश संभालता गया, घर गृहस्थी आ गयी । जिम्मेदारीयां बढ़ गयीं । पिता जी के पटिदारी में ज्यादा तर लोग इस दुनियां से चले गए एकाध लोग जो बचे हैं वो भी खटिया ही पकड़े हुए है ।
कोई मामला होता है तो आज भी लोग उन्हीं से समझने जाते हैं । लेकिन अब वो भी धीरे - धीरे गांव के हो गये हैं , क्यों कि वो पटिदार हमारे नहीं पिता जी के थे ।
हमारे पटिदार गांव में नहीं हमारे घर में ही पड़े हुए हैं । पिता जी की पटिदारी बहुत अच्छी थी । 
हमारी पटिदारी तो बहुत दुखदाई है । किसी से बात चीत है तो किसी से छत्तीस का आंकड़ा , जब की सारे पटिदार एक ही घर में रहते हैं ।
अब किसी को कहां वक्त मिलता है कि गांव में जाकर पुरानी पटिदारी और खानदान के लोगों की ख़ैर खैरियत ले सके ।
घर में प्रवेश करते ही लगता है कि जैसे गांव में आ गए हैं ।
जितने लोग उतने विचार ।
घर में बसे गांव का मलिक आधुनिक विचारधाराओं एवं परिधानों के आगे नतमस्तक है , जैसे वो रिटायर हो चुका है।
जिंदगी के बचे हुए दिनों को गुंगे और बहरे बनकर खामोशी से अपनी आंखों में पट्टी बांध कर काट लेना चहता है ।
कुछ घर में बसे गांव के मालिक का सम्मान अगर बचा है तो उन्हें भी कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के तहत भ्रमित कर दिया है । जिसका नतीजा किसी को बुरा और दुश्मन समझते हैं । 
तो किसी को हमदर्द , लेकिन ये बनावटी चश्मे काफी दिनों तक बरकरार नहीं रहते । लेकिन इतना तो जरुर होता है कि आंख बंद होते ही घर में बसे गांव में लंबा विवाद छोड़ जाते हैं ।
गांव का मुखिया हो या  
घर का मुखिया हो या 
अपने परिवार का किसी के कहने पर पुर्णत: विश्वास कर लेना मुर्खता ही नहीं बल्कि महा मुर्खता है । इसमें सत्यता की पड़ताल स्वयं करनी चाहिए ।
पेड़ की हर शाख बराबर नहीं होती , फिर भी पोषण हर शाख को बराबर पाने का अधिकार है ।
पनाह मांगता हूं मैं ऐसी पटिदारी से कि न तो कोई घर से बाहर निकल कर अलग अपना घर बनवाना चाहता है और न तो बनाने देता है ।
कुछ लोगों को देखा है कि अगर वो घर से निकल कर अपना एक घर बना लिए हैं फिर भी पुराने घर में ताला लगा कर अपना अधिकार जमाए हुए हैं ।
भाई ही तो पटिदार बनता है और आज के इस हरामखोर जमाने में न तो छोटों को कोई तमीज है न तो बड़ों को । मिला जुला कर सारे रिश्ते इस ज़माने के आकाओं ने खूंटी पर टांग दिया है ।

अर्थात -
पहले एक घर था 
उस एक घर में छव, सात लोग पैदा हुए ।
परिवार और बढ़ने पर एक ही घर में सबका गुजर बसर हो पाना मुश्किल था ।
लोगों ने घर से निकल कर पांच , छव घर बनाया 
इस तरह एक मुहल्ला हो गया ।
आज वो मुहल्ला फिर एक ही घर में तैयार हो गया है ।

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