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बुधवार, 9 अगस्त 2023

एक दिन बिक जाएंगे माटी के मोल

सत्कर्म और कुकर्म अलग-अलग हैं ।
इबादत और पूजा अलग-अलग हैं ।
पुन्य और पाप दोनों अलग-अलग हैं ।
पाप पाया नहीं जाता कमाया जाता है ।
पाप के लिए कुछ करना पड़ता है ।
कुछ पाप अंजाने में होते हैं ।
कुछ पाप जान बूझ कर होते हैं ।
कुछ पाप के हम भागीदार होते हैं ।
कुछ पाप हमें विरासत में मिलते हैं ।
बिना कमाए हुए पाप जो हमें विरासत में मिलते हैं
वो अपने लोगों के कुकर्म की देन है ।
जो कई पीढ़ी पीछा नहीं छोड़ती ।
इसी तरह पुन्य भी कमाया जाता है ।
पुन्य भी विरासत में मिलती है ।
जो कई पीढ़ी तक पीछा नहीं छोड़ती ।
जिस कर्म से लोगों को दुःख पहुंचे और उस दुःख में लोगों के मुंह से बद्दुआ निकले , हाय भी निकले , अभिशाप भी निकले एवं श्राप भी निकले ।
यह निकलना जारी हो जाता है ।
लोगों के हर रोज की बातों में और बातों ही बातों में लोगों के द्वारा दी गई कभी किसी मिसालों में लोग चरित्र हीनता और कुकर्मता का प्रमाण देते हैं ।
ऐसे ही सत कर्म से जब लोगों के हाथ आशिर्वाद के लिए उठ जाएं , जब लोगों के मुंह से दुआएं निकल पड़े , जब लोगों के बीच अच्छाईयों की चर्चा होने लगें , तब भी मिसालों में नाम आने लगता है ।
यह सब कमाई गयी चीजें हैं , जो अपने जीवन से लेकर अपने पीछे आने वाले लोगों तक को मिलती हैं । लोगों के चर्चाओं में भी और लोगों के मिसालों में भी । इस लिए हमेशा इस बात का ध्यान होना चाहिए कि हमारी वाणी और हमारे कर्तव्य किसी को दुखी न करें ।
जब कभी अपनी शिकायत सुनो तो समझ लो कि कहीं कुछ गलती हुई है । यही चीज़ कुकर्मता की ओर ले जाना शुरु करती है । तब अपने सत्कर्म को बढ़ाना शुरु कर दो , जब तुम्हारे कुकर्म का पलड़ा भारी होने लगें तो सत्कर्म का पलड़ा भारी करना शुरू कर दो ।
ये कोई और नहीं करेगा ये तुमसे शुरु हुई है तो तुम्हीं से खतम भी होगी । कहीं ऐसा न हो कि तुम इस दुनियां से चले जाओ और सब अपने आने वाले लोगों के लिए विरासत में छोड़ जाओ और पीढ़ी दर पीढ़ी लोग आप की बातें और मिसालें सुनते रहें ।
एक दिन बिक जाएंगे माटी के मोल ।
जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल ।।

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