नहीं छोड़ेगी ज़िंदा बदनसीबी मार डालेगी ।
मुझे लगता है ऐ तालिब ग़रीबी मार डालेगी ।।
या ख़ुदा घबरा गया हूं गर्दिशे अइयाम से ।
इससे बेहतर है कि दे दे मौत ही आराम से ।।
या इलाही ये मेरा कैसा मुकद्दर हो गया ।
हाथ में आते ही मेरे सोना पत्थर हो गया ।।
सारा घर चूता रहा बर्सात में ।
न दिन में बच्चे सो सके न रात में ।।
हो गयी दुनियां मेरी बर्बाद कैसे चुप रहूं ।
और क़ातिल है अभी आज़ाद कैसे चुप रहूं ।।
भूखे , प्यासे और नंगे भर रहें हैं सिसकियां ।
सुन के मज़लूमों की ये फरियाद कैसे चुप रहूं ।।
ग़रीबी का दर्द दर्शाते हुए ये शेर मशहूर शायर व अदीब डॉ तालिब गोरखपुरी की शायरी से चुने गए हैैं ।
इस तरह के हज़ारों शेर उनकी ग़ज़लों में मौजूद हैं ।
अबतक इनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । जिन में चंद मशहूर किताबों के नाम निम्न लिखित हैं ।
1- उजाले उनकी यादों के ।
2- दास्तांने फिराक ।
3- सितारों से आगे तथा अन्य ।
अबतक इनको अदबी ख़िदमात के लिए अदबी सोसायटीयों ने बहुत से एवार्ड से नवाज़ा है । जिनमें काबिले जिक्र एवार्ड 1- मिर्ज़ा ग़ालिब एवार्ड
2- फिराक गोरखपुरी एवार्ड
3- कृष्ण बिहारी नूर एवार्ड
4- कैफ़ी आज़मी एवार्ड भी शामिल हैं ।