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बुधवार, 9 दिसंबर 2020

अपने साथ बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया

मुझे तो ऐसा लगता है कि जैसे देश का मोडिफिकेशन 80% हो चुका है । लेकिन कोई भी चीज देश हीत या समाज हित के पक्ष में नहीं दिख रही है। बेरोजगारी पहले से और बढ़ गई है , लूट , रहजनी , के साथ क्राईम भी बढ़ गया है ।
कोरोना से पहले कुछ कुछ प्राब्लम थी लेकिन कोरोना अपने साथ बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया , जिसने हर एक व्यक्ति को परिवर्तित कर के रख दिया , जिसे आप कहीं भी देख सकते हैं
पहले का जीवन काफी हद तक सामान्य था , जन मानस के हालात बनते थे और बिगड़ते थे , लेकिन आज बिगड़ने के सिवा बनने का कोई रास्ता नहीं है ।
कोरोना काल में खाद्य सामग्री डोर टू डोर लोग बेचते थे और सस्ता था । हर लोगों के लेने के लायक़ था , लेकिन कोरोना में जैसे ही ढील मिली सामानों की कीमत ने आसमान छू लिया है । दैनिक आवश्यकताओं में कोई भी चीज ऐसी नहीं है कि जिसकी क़ीमत में गिरावट आई हो , यहां तक कि यत्रा भाड़ा भी डबल तिबल हो चुका है । कोरोना महामारी थी , जो सिर्फ इन्शानों पर थी न कि सामानों पर , कोरोना में आज जो ढील दी गई है । इससे ऐसा नहीं है कि देश और देश की जनता मालामाल हो गई है । हर त्राशदी के बाद सब-कुछ सामान्य होने में काफ़ी समय लग जाता है । मगर कीमतें बढ़ाना , यात्रा भाड़ा बढ़ाना ये टेंडेंसी नहीं समझ में आती ।
 छोटे से लेकर बड़े वाहनों को चलाने का एक नियम बनाया गया था जिससे यात्रा करने में भी यात्रीयों के बीच दूरी बनी रहे जैसे- पैर से चलाने वाले रिक्शा पर एक सवारी , तीन चक्का टैम्पू में सिर्फ दो लोग वो भी पीछे सीट पर , चार चक्का वाहन वाले सबसे पीछे दो बीच वाली सीट में दो और 
सबसे आगे एक चालक और एक पैसेंजर इसका पालन सिर्फ फस्ट अन लाकडाऊन में हुआ था जिसके कारण यात्रा भाड़ा बढा था परन्तु सेकन्ड अन लाकडाऊन से कोरोना से पहले वाला नियम लागू लोगों ने खुद कर लिया है । किसी भी नियम का या डिस्टेंसिंग का या मास्क का कोई पालन नहीं है । जब गाडियां ओवरलोड और कस कर चलने लगीं हैं तो किराया भी कम हो जाना चाहिए मगर पैसा ज्यादा दे देना भलाई या मजबूरी जो भी समझते हों लेकिन नियमों का पालन करना जरूरी या मजबूरी नहीं है ?

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