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बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

उसकी नज़र में

उस की नज़र में मैं बेवकूफ इस लिए हूं क्यो कि मैं सच बोलता हूं । सच्चाई कड़वी होती है जो आसानी से नहीं पचती ।
सच्चाई का सहारा लेने के लिए जब किसी सच्चे इंसान की जरुरत पड़ेगी तो तुम मुझे ढूंढते हुए मेरे पास आओगे ।
लेकिन झूठ का सहारा लेने के लिए तुम्हें किसी को ढूंढने की आवश्यकता नहीं है , क्यों कि झूठ के मामले में तो तुम खुद ही पारंगत हो ।

शनिवार, 20 अगस्त 2022

जिसकी जितनी किस्मत थी

जिसकी जितनी किस्मत थी ।
उतना उसका हिस्सा आया ।।

किसी को ज़रुरत से कम आया ।
किसी को जरुरत से ज्यादा आया ।।

किसी को गुर्बते रुसवाई आया ।
किसी को दौलतें जागीर आया ।।

किसी की आंखों में नीर आया ।
किसी के हाथों में खीर आया ।।

मुझे सब्र था तो राहे सूलूक में ।
मेरे हिस्से में मेरा पीर आया ।।

जावेद उन सब को अब भूल जा ।
तू नज़र में जिसके हक़ीर आया ।।

शब्दार्थ - 
हक़ीर = छोटा , तुच्छ , नीच , गिरा हुआ इत्यादि ।

राहे सूलूक = ग़रीब , दुखियारों की मदद करना ,
                  ईश्वर की तलाश , आत्मा को     परमात्मा     
                  में लीन करना आदि इत्यादि ।
                  
पीर = कामिल मुर्शीद , संत , पहुंचे हुए फ़कीर , 
          औलिया अल्लाह , सच्चे गुरु आदि इत्यादि 
          
नीर = पानी , आंखों से संबंध होने पर आंसू ।

खीर = विषेश प्रकार का स्वादिष्ट व्यंजन ।

गु़र्बत = ग़रीबी , गुर्बते = जरुरत से ज्यादा ग़रीब ।

रुसवाई = हंसी का पात्र बनना , लोगों के द्वारा
               मजाक उड़ाया जाना आदि इत्यादि ।
               
दौलतें जागीर = बे शुमार दौलत , इलाके का
                       मालिक , जरुरत से ज्यादा धन
                       का होना अति सम्मानित सम्मान
                       में लोगों का सर झुक जाना ।                                           

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

घर का मुखिया

बचपन में सुनता था कि गांव में पटिदारी है ।
वो पटिदारियां पिता जी की थीं , जिन्हें हर अवसर पर पूछा जाता था और खुद भी लोग हमेशा आया जाया करते थे । बड़ी एकता और मोहब्बत थी उस जमाने की पटिदारी में , बिना पटिदारी के राय मशविरा के किसी कार्य को संपन्न कर लेना संभव ही नहीं था।
गांव में सभी पटिदारों का घर ज्यादातर हमारे घर के आस पास में ही था ।
जैसे - जैसे होश संभालता गया, घर गृहस्थी आ गयी । जिम्मेदारीयां बढ़ गयीं । पिता जी के पटिदारी में ज्यादा तर लोग इस दुनियां से चले गए एकाध लोग जो बचे हैं वो भी खटिया ही पकड़े हुए है ।
कोई मामला होता है तो आज भी लोग उन्हीं से समझने जाते हैं । लेकिन अब वो भी धीरे - धीरे गांव के हो गये हैं , क्यों कि वो पटिदार हमारे नहीं पिता जी के थे ।
हमारे पटिदार गांव में नहीं हमारे घर में ही पड़े हुए हैं । पिता जी की पटिदारी बहुत अच्छी थी । 
हमारी पटिदारी तो बहुत दुखदाई है । किसी से बात चीत है तो किसी से छत्तीस का आंकड़ा , जब की सारे पटिदार एक ही घर में रहते हैं ।
अब किसी को कहां वक्त मिलता है कि गांव में जाकर पुरानी पटिदारी और खानदान के लोगों की ख़ैर खैरियत ले सके ।
घर में प्रवेश करते ही लगता है कि जैसे गांव में आ गए हैं ।
जितने लोग उतने विचार ।
घर में बसे गांव का मलिक आधुनिक विचारधाराओं एवं परिधानों के आगे नतमस्तक है , जैसे वो रिटायर हो चुका है।
जिंदगी के बचे हुए दिनों को गुंगे और बहरे बनकर खामोशी से अपनी आंखों में पट्टी बांध कर काट लेना चहता है ।
कुछ घर में बसे गांव के मालिक का सम्मान अगर बचा है तो उन्हें भी कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के तहत भ्रमित कर दिया है । जिसका नतीजा किसी को बुरा और दुश्मन समझते हैं । 
तो किसी को हमदर्द , लेकिन ये बनावटी चश्मे काफी दिनों तक बरकरार नहीं रहते । लेकिन इतना तो जरुर होता है कि आंख बंद होते ही घर में बसे गांव में लंबा विवाद छोड़ जाते हैं ।
गांव का मुखिया हो या  
घर का मुखिया हो या 
अपने परिवार का किसी के कहने पर पुर्णत: विश्वास कर लेना मुर्खता ही नहीं बल्कि महा मुर्खता है । इसमें सत्यता की पड़ताल स्वयं करनी चाहिए ।
पेड़ की हर शाख बराबर नहीं होती , फिर भी पोषण हर शाख को बराबर पाने का अधिकार है ।
पनाह मांगता हूं मैं ऐसी पटिदारी से कि न तो कोई घर से बाहर निकल कर अलग अपना घर बनवाना चाहता है और न तो बनाने देता है ।
कुछ लोगों को देखा है कि अगर वो घर से निकल कर अपना एक घर बना लिए हैं फिर भी पुराने घर में ताला लगा कर अपना अधिकार जमाए हुए हैं ।
भाई ही तो पटिदार बनता है और आज के इस हरामखोर जमाने में न तो छोटों को कोई तमीज है न तो बड़ों को । मिला जुला कर सारे रिश्ते इस ज़माने के आकाओं ने खूंटी पर टांग दिया है ।

अर्थात -
पहले एक घर था 
उस एक घर में छव, सात लोग पैदा हुए ।
परिवार और बढ़ने पर एक ही घर में सबका गुजर बसर हो पाना मुश्किल था ।
लोगों ने घर से निकल कर पांच , छव घर बनाया 
इस तरह एक मुहल्ला हो गया ।
आज वो मुहल्ला फिर एक ही घर में तैयार हो गया है ।

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

मेरी दुनियां है तुझमें कहीं

औलाद क्या है ?
इसे बाप ही जानता है। 
बाप क्या होता है ?
इसे औलाद ही जानता है । 
बाप का दर्द हो सकता है , कि औलाद कुछ देर के लिए न समझ सके , लेकिन 
बाप के लिए औलाद का दर्द बहुत जानलेवा होता है । औलाद के दर्द के आगे बाप , अपने सारे दुःख दर्द भूल जाता है । लेकिन वो औलाद अपना दुःख दर्द किस से कहे ? 
जिसका बाप अपनी औलाद के बचपन में ही दुनियां को छोड़ गया हो ।

बाप जिंदा है तो ये एहसास होता है।
मेरी दुनियां है तुझमें कहीं।
तेरे बिन मैं क्या कुछ भी नहीं।।
बाप के न होने से हर वक्त यह एहसास होता है।
तुम गए ...................!
सब गया .................।।
कोई अपनी ही मिट्टी तले ।
दब गया ..................।

क्या करुं आप मेरे एहसास में जो इतना घुले हुए हैं कि आज तेईस साल में भी आप की एक एक बात आज भी याद है। ऐसा लगता है कि आप से मिले हुए तेईस साल नहीं बल्कि तेईस घंटे बीते हों न जाने किस वक्त आप के पुकारने की आवाज मेरे कानों से टकरा जाय............ ।

मंगलवार, 12 जुलाई 2022

अपराधी कौन नहीं है ?

अपराध होने के कारण ....... ।
अपराध सिर्फ शराब के नशे में ही नहीं होता है ।
अपराध दौलत के नशे में भी होता है ।
अपराध बहुत मज़बूरी में भी होता है ।
अपराध बहुत ग़रीबी में भी होता है ।
अपराध जवानी के नशे में भी होता है ।
अपराध शार्ट कपड़ों के आकर्षण से भी होता है ।
अपराध अंग प्रदर्शन से भी होता है ।
अपराध जलन और नफ़रत की भावनाओं से भी होता है ।
अपराध किसी को नीचा दिखाने के कारण भी होता है ।
अपराध किसी की सामाजिक प्रतिष्ठा को धुमिल करने के लिए भी होता है ।
अपराध किसी का पेट पालने के लिए भी होता है ।
अपराध कभी - कभी न्याय को साबित करने के लिए भी होता है ।
अपराध अपने आप को आगे बढ़ाने के लिए भी होता है ।
अपराध खुद को बचाने के लिए भी होता है ।
अपराध किसी को बचाने के लिए भी होता है ।
अपराध काम वासना की हवश में भी होता है ।
अपराध क्रोध में भी होता है ।
अपराध लोभ में भी होता है ।
अपराध मोह में भी होता है ।
अपराध मोहब्बत में भी होता है ।
अपराध बिजनेस में धोखाधड़ी का भी होता है ।
अपराध शिक्षा जगत में डिग्रियों के धोखाधड़ी का भी होता है ।
अपराध चिकित्सा जगत में भी होता है ।
अपराध कानूनी पैर पैतडे में भी होता है ।
अपराध बैंकिंग सेक्टर में भी होता है ।
अपराध राजनीति में भी होता है ।
अपराध करते हुए कोई पकड़ा गया ।
अपराध कर के कोई फरार है । जानकारी में रहते हुए भी आज तक पकड़ा नहीं गया ।
अपराध किये बगैर किसी को अपराधी साबित कर दिया गया ।
अपराध कहां नहीं है ?
अपराधी कौन नहीं है ?
कोई परदे में है ।
कोई सरेआम है ।
कोई राष्ट्रीय अपराधी है ।
कोई अंतर राष्ट्रीय अपराधी है ।
अपराधी समाज की नजरों में कितने परसेंट होंगे ?
अपराधी कानून की नज़रों में कितने परसेंट होंगे ?
अपराधी अल्लाह और ईश्वर की नजरों में 99% हैं 
अपराधी हर कार्यालयों में हैं ।
अपराधी हर विभाग में हैं ।
अपराधी हर चौराहे पर है ।
अपराधी हर गली में हैं ।
अपराधी हर नुक्कड़ पर है ।
अपराधी हर गांव में हैं ।
अपराधी हर कस्बे में हैं ।
अपराधी हर ब्लाक में हैं ।
अपराधी हर तहसील में हैं ।
अपराधी हर जिले में हैं ।
अपराधी हर नगर में हैं ।
अपराधी हर महानगर में हैं ।
अपराधी हर राज्य में हैं ।
अपराधी हर देश में हैं ।
अपराधी सिर्फ मर्डर करने वाला ही नहीं है ।
अपराधी चोरी करने वाले भी हैं ।
अपराधी ठगी करने वाले भी हैं ।
अपराधी बेईमानी करने वाले भी हैं ।
अपराधी घूसखोरी करने वाले भी हैं ।
अपराधी धोखाधड़ी करने वाले के साथ ही साथ गलतफहमियां पैदा करने वाले भी हैं ।

रविवार, 3 जुलाई 2022

तुम अगर तुम हो तो क्या तुम हो ?

तुमने मुझे अपना समझा ? या नहीं समझा ।
तुमने मुझे दिल से चाहा ? या नहीं चाहा ।
इन बातों से मुझे न तो कोई फर्क पड़ता है और
न तो मुझे कोई परवाह है ।
अगर मुझे फर्क पड़ता है । अगर मुझे किसी बात की परवाह है तो सिर्फ इस बात की , 
कि मैंने तुम्हें चाहा है और वो भी बे पनाह.....
दिल की गहराइयों से ........... ।

मुझे तुमसे कुछ पाने की लालच नहीं है ।
सच तो यह है कि मैंने तुमसे कुछ हासिल करने की कभी कोई ख्वाहिश ही नहीं रक्खी ।

छल करना तुम्हें आता होगा, मुझे नहीं
तुम छलावे में आ सकते हो लेकिन मैं नहीं
मुझे तुमसे कोई छल नहीं करना 
लेकिन हां तुम्हें एक दिन मैं यह एहसास जरुर करा दुंगा कि चाहत किसे कहते हैं ?
और किसी को दिल की गहराइयों से चाहना क्या होता है ।

तुम , अगर तुम हो तो क्या तुम हो ?
मैं , अगर मैं हूं तो क्या मैं हूं ?
इसे सिर्फ साबित ही नहीं , बल्कि एहसास भी करा दुंगा कि मुझमें और तुममें फर्क क्या है ? 
और क्युं है ।

रविवार, 26 जून 2022

छोड़ दे सारी दुनियां किसी के लिए

एक फिल्म देखा था , "मदर इंडिया " जिसमें नायक की पारिवारिक स्थिति दयनीय है।
नायक और नायिका यानी कि पति और पत्नी दोनों खेत की जुताई करते हैं। खेत जोतने के बीच एक बहुत वजन और बड़ा पत्थर का टुकड़ा पड़ा हुआ था , जिसे नायक ने स्वयं अकेले ही उसे अपने दोनों हाथों से ढकेल कर खेत से बाहर निकालने की कोशिश करता है । अचानक वह पत्थर का टुकड़ा ऊपर से नीचे की ओर सरक जाता है , जिसमें नायक का दोनों हाथ दब कर खराब हो जाता है।
अब उसकी जिंदगी बिना हाथ के न जीने के लायक रही और न मरने के।
एक रात वह उठा और अपने बीबी और बच्चों को देखा न जाने वह मोह माया और अपने लाचारी के सोचों के कितने हद तक पहुंच गया कि उसी रात चुपके से घर छोड़ कर गायब हो गया , उसके बाद से उसका पता पुरी फिल्म में कहीं नहीं चला।
इस घटनाक्रम को बताने कि जरुरत क्यों पड़ी मुझे ? 
 सिर्फ इस लिए कि जो लोग आत्म हत्या कर लेते हैं।
आत्म हत्या का मतलब क्या है ?
अपने ही हाथों द्वारा अपने जीवन लीला को समाप्त कर देना । सवाल के मुताबिक तो जवाब यही होगा।
लेकिन आत्म हत्या की जरुरत क्यों पड़ती है ?
इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं , आप खुद भी सोंच सकते हैं , जिसकी वजह से आत्म हत्या करने वाले के दिलोदिमाग में यह गुज जाता है कि अब आगे और जिवित रहने कि कोई आवश्यकता नहीं है।
अल्लाह (ईश्वर) न करे कि किसी के जिंदगी में ऐसा मोड़ आए।
यह जीवन है । इस जीवन में बहुत सारे मोड़ आते हैं , जिनको आप स्वयं ही मैनेज कर सकते हैं और आप को ही मैनेज करना भी पड़ता है फिर भी अगर ऐसे मोड़ पर आकर खड़े हो गए हों जहां मौत के सिवा कोई रास्ता न रह गया हो , तो भी आप को एक काम करना चाहिए ।
वह कौन सा काम है ? जिसे आत्महत्या के पहले करना चाहिए ।
यह सोचना चाहिए कि आप के मरने से कितने लोग कानूनी और मानसिक रुप से परेशान होंगे ।
यह अलग बात है कि आप सोसाईट नोट तैयार कर देंगे फिर भी लोगों को आप के न होने का दर्द तो रहेगा ही ।
वहां दर्द कम होता है जब आप अचानक गायब हो जाएंगे । जैसे ऊपर मैंने फिल्म का एक शाट दिखाया वहां भी वह मर सकता था लेकिन कैसे ? फंदा लगा नहीं सकता , ज़हर खा नहीं सकता क्यों कि उसके पास तो दोनों हाथ ही नहीं हैं , फिर भी वह दरिया में डूब सकता था । ट्रेन के आगे आ सकता था । मरने का रास्ता उसे मिल जाता मगर उसने आत्महत्या नहीं किया , फिर आप क्यों ?
आप भी वहां से गायब हो जाइए न , जहां आप अपनी जीवन लीला समाप्त करना चाहते हैं ।
दुनियां छोटी नहीं है । आप की सोचों से भी बड़ी है।
जाओ ......। 
ऐसी जगह चले जाओ कि जहां तुम्हारी आखरी सांस तक तुम्हारा कोई जानने वाला तुमसे न मिल पाए और न तो कभी जान पाए , क्यों कि तुम उन सभी के लिए मर चुके हो जो भी तुम्हें जानते हैं । 
वहां अपने जिंदगी की सुरुआत ऐसे करो कि जैसे तुमने एक नया जीवन पाया है ।
बस हो गई आत्महत्या । यही तो है आत्महत्या ।
इस जीवन को जिसने दिया है । उसी को समाप्त करने दो , खुद से समाप्त करने का तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है । खुद से समाप्त करने पर आत्म लोक में नहीं जाओगे बल्कि प्रेतलोक में चले जाओगे । 
अंत में बस इतना ही -
छोड़ दे सारी दुनियां किसी के लिए ।
मे मुनासिब नहीं जिंदगी के लिए ।।
लेख पसंद आये तो कमेंट जरुर करें , यदि कोई कमी महसूस हो तो सलाह जरुर दें ।

सोमवार, 9 मई 2022

समझदार और चालाक

समझदार और चालाक वो नहीं जो अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी छल लेता है , बल्कि समझदार और चालाक वो है जो अपनी आवश्यकताओं को पुरी करने के लिए एक इमानदारी से भरा हुआ जीवनयापन का रास्ता बना लेता है।
जिसमें न तो किसी को छलने की जरुरत होती है और ना ही अपने आप को किसी से छुपाने की

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

आप के प्रति लोगों का नज़रिया कैसा है ?

आप कितने ईमानदार हैं ?
आप कितने बेईमान हैं ?
आप का किरदार कैसा है ? 
आप की सोंच कैसी है ?
आप के प्रति लोगों का नज़रिया कैसा है ?
आप के प्रति लोगों का व्यवहार कैसा है ?
इसे आप बहुत अच्छी तरह से जानते हैं ।
लेकिन अपने आप को समृद्ध बनाने और विकास की ओर बढ़ाने की परवाह को नज़रंदाज़ कर के , आप लोगों के हर चीज को जानने के चक्कर में , अपने वक़्त और उर्जा को ज्यादा बर्बाद करते हैं ।
जिस दिन आप खुद को समझने और खुद को आगे बढ़ाने के चक्कर में पड़ेंगे , तो लोगों के चक्कर को छोड़ देंगे ।

मंगलवार, 15 मार्च 2022

समझना और समझाना

किसी को समझने के लिए कुछ प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है । 
कुछ वक़्त देना पड़ता है । 
कुछ दिन गवाने पड़ते हैं ।
हर व्यक्ति अपने आप को समझाने की कोशिश में लगा हुआ है । पुरी बात / मुआमला , समझने से पहले अपनी बातों के माध्यम से खुद ही समझाना शुरु कर देते हैं ।
लेकिन हर लोग समझने की कोशिश नहीं करते । 
अपनी समझाने के चक्कर में ।
समझना और समझाना दोनों अलग - अलग प्रकृयाएं हैं ।
बिना किसी की पुरी बात समझे हुए कुछ समझाया नहीं जा सकता । अकसर ऐसा भी होता है कि जब किसी को पुरी तरह से समझ लेंगे , तो फिर समझाने की जरुरत नहीं पड़ती । बेहतर तो यही होगा कि जबतक कोई समझाने को न कहे तब-तक किसी को समझाने की कोशिश न करें । यही सबसे बड़ी समझदारी है । क्यों कि पता नहीं अगला व्यक्ति उस समय किस मुड में हो । बातों ही बातों में बात का बतंगड़ भी हो जाता है । कभी कभी अपशब्दों के प्रयोग से धरापकड़ी भी हो जाती है । जहां आप के बोलने की आवश्यकता न हो वहां खामोशी बनाए रखना सबसे बड़ी कला और समझदारी है ।
आज के इस तनावपूर्ण दौर में सभी लोग हमेशा फ्रेश मूड में नहीं होते ।