चल पड़ा हूं सफ़र पे अब अपने ।।
अब सफ़र से तो कोई लौटेगा ।
उठ गया हूं.. , तो कोई बैठेगा ।।
खोना , पाना , आना , जाना ।
सदियों का है , ये खेल पुराना ।।
सोंच है कि सब-कुछ मिल जाए ।
सोंच- सोंच कर सारी उम्र गंवाए ।।
सबको परखा , सबको जाना ।
क्या कभी खुद को पहचाना ।।
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