आप को ईश्वर ने जिस काम के लिए इस दुनिया में भेजा है उसे आप नहीं जानते। मगर वो सही वक़्त पर सही समय पर आप से करवा लेगा।
आप सोंचते कुछ और हैं, मगर होता कुछ और है।
इसका क्या मतलब है। कभी सोचा आप ने ?
आप जो सोचते हैं वो आप के स्वार्थ के मुताबिक सही है लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वो ईश्वर की नजर में सही न हो आप के लिए नुकसान दायक हो, आज हो या आप के जीवन में कभी भी।
आप ये भी सोंचते होंगे की मै इस बुरी हल में क्यों हूं ?
मेरे लिए ईश्वर ने कुछ नहीं किया ।
लेकिन मैं ये पुछना चाहता हूँ कि आप ने ईश्वर के लिए
क्या किया है ?
भलाई इसी में है कि शांति पुर्वक ईश्वर की महिमा को
समझने की कोशिश करें।
सब्र करें ईश्वर जो करता है और जो करेगा आप के हित में आप की भलाई के लिए अच्छा ही होगा।
जब कुछ समझ में न आये तो ईश्वर के उपर छोड़ कर
इन्तजार करें सन्तुष्टि और शांति जरूर मिलेगी।
hello my dear friends. mai javed ahmed khan [ javed gorakhpuri ] novelist, song / gazal / scriptwriter. mare is blog me aapka dil se swaagat hai.
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मंगलवार, 10 दिसंबर 2019
ईश्वर
रविवार, 8 दिसंबर 2019
अचम्भव
अचंभव
मगर कडवा सच है कि इस दुनियां में रहने वाले 75% लोग यह नहीं जानते की रोटी, दाल, चावल, मटर, सब्जी, घी, तेल, वगैरह वगैरह चीजें कहां से आती हैं।
75% लोग पेड़ों की कल्पना करते हैं।
कुछ लोग तो यह भी सोंचते हैं कि यह सब किसी मशीन से तैयार होती होगी। मशीनरी की सोच वाले काफी हद तक सही भी हैं क्यों कि चाईना एक देश है जो पूरी दुनिया में मशीनरी से बनाई हुई चीज़ों की सप्लाई करती है। मगर भारत में पसीने की जगह खूंन बहाने वाले किसानों को उनके उपजाये गये वस्तुओं का कोई मोल नहीं मिलता।
आज होटलों में चार रोटी की कीमत डेड से दो किलो आटे के बराबर है। चावल, शब्जी, दाल, अंडा, मीट, मछली, इत्यादि सब चीजों का यही हाल है।
हमारे देश भारत में होटलों में एक टाईम का खाना एक व्यक्ति को 150 रुपये से 1000 के ऊपर तक मिलता है। होती सब वही चीजें हैं जो एक आम इंसान भी खाता है। इस एक टाईम के भोजन पर हुये खर्च 150 रुपये में एक परिवार पांच से सात लोगों का आराम से शादा भोजन पेट भर के खा लेता है।
1000 या इसके ऊपर एक टाईम के भोजन पर खर्च
करने वाले ये कभी नहीं सोंच पाते की इसी देश में कितने भूखे भी सोते हैं। जिसमें अधिकान्स मजदूर और किसान ही होते हैं। आगे की समस्याओं पर आप लोग खुद सोंचे और समझें।
गुरुवार, 5 दिसंबर 2019
तुम्हारा क्या है ?
तुम्हारा क्या है ?
जो तुमने खा लिया
जो तुमने पहन लिया
जो तुमने इस्तेमाल किया
जो तुमने जिया
जो तुमने झेला
जो तुमने दुख उठाया
जो तुमने सुख उठाया
जो तुमने सांसें ली
जो तुमने बेच दिया
जो तुमने किसी को दे दिया
जो किसी के काम आए
जो किसी का सहारा बने
जब किसी को हंसाया
जब किसी की कद्र की
यही सब तुम्हारा है ।
जो बना रहे हो वह तुम्हारा नहीं है।
आने वाले लोगों का है।
जो खरीद रहे हो वो भी तुम्हारा नहीं है।
जो तुम इस्तेमाल कर रहे हो और जो
पहने हुये हो ये तभी तक तुम्हारा है जबतक
तुम्हारी सांसें चल रही हैं फिर ये सब भी किसी
और का हो जाएगा।
अब यह सोंचो की तुम कौन हो ?
तुम्हें क्या करना है ?
और क्या कर रहे हो।
ये दुनिया जो विकास के लिए भाग रही है।
जो ये सोंचते हैं कि मैने बहुत कुछ किया।
तो इस बात को भूल जाओ क्यों कि ये सब तुम्हारे बाद
किसी और का हो जाएगा।
पूरी दुनिया जो भी विकास कर रही है वो सब इस
दुनिया में आने वाले लोगों के लिए हो रहा है।
सोमवार, 2 दिसंबर 2019
धर्ती माता
पता नहीं किसने कहा था, एक सीनरी पर लिखा हुआ
पढा था। जिसे आज तक नहीं भूल पाया।
GOD MADE LAND AND MAN MADE BOUNDARIES.
( गौड मेड लैन्ड ऐन्ड मैन मेड बाऊनडरीज )
( ईश्वर ने धरती को बनाया और इंसानों ने इस धरती को
अपनी अपनी सीमाओं में बांट दिया। )
अपने अपने देश का नाम रख लिया।
इस दुनिया में कितने लोग धरती को माता मानते हैं ?
अधिकांश ज्यादा पढे लिखे लोग भी मिट्टी का ढेर या मिट्टी
की प्लेट मानते हैं।
जब की ( ज़मीन ) धरती जीवित है। इसके अंदर भी
( जान ) प्राण है।
आप कैसे शिस झुकाते हैं आप को पता है।
मगर पूरी दुनिया के अंदर जहाँ जहां मुसलमान हैं।
उस देश के जमीन को अपने दिल से प्यार करते हैं।
एक दिन में पांच बार हर मुसलमान अपने दोनों पैर के घुटनों को, फिर दोनों हाथ के पंजो को धरती पर रख कर
अपने माथे को धरती पर रखता है।
क्यों कि ( अल्लाह ) ( ईश्वर ) को यही पसंद है।
फिर मरने के बाद भी इसी धरती माता के गोद में सो जाता है। अपने देश और धरती के प्यार और लगाव को आप भी
इसी तरह सबित करें, फिर जो प्रमाण मुसलमानों से मागना
चाहते हैं लोग । उसकी जरूरत शायद नहीं पड़ेगी।
रविवार, 1 दिसंबर 2019
जन्म से पहले
जन्म से पहले हम जहाँ होते हैं वहां
आनन्द ही आनन्द है कितना आनन्द है
इसकी कोई व्याख्या नहीं की जा सकती।
अगर आप इस आनन्द की कल्पना करना चाहते हैं
तो आप के कल्पनाओं की आखरी सीमा उस कल्पना
के - 0 % तक ही हो सकती है।
जन्म लेने के बाद हम जहाँ होते हैं वहां दुख के सिवा
कुछ भी नहीं है। यहां सुख पाने के लिए किसी न किसी
को दुख देना ही पड़ेगा।
मार दिया
अपनो ने दुत्कार दिया ।
गैरों ने ही प्यार दिया ।।
अंधेरे में जब डूबा था ।
उजाला मेरा यार दिया ।।
बे माकसद बे मायने थे ।
खुद से ही अनजाने थे ।।
जीवन कैसे जीना है ।
उसने ही तो सार दिया ।।
लाखों चेहरे लाखों लोग ।
लाखों व्यंजन लाखों भोग ।।
कितना दर्द दिया है जावेद ।
यार को अपने मार दिया ।।
चौक की रंगीनियां
मां हीरो से कहती है,,,,,, ।
मेरी बेटी सोना है सोना और तुम,,,,,,,,,, ।
इस बात पर हीरो गुस्से में बोल पड़ा,,, ।
तो ले जाओ अपनी बेटी को उस बाजार में ,
जहाँ तुमको इसके मुनासिब दाम मिल सकें ,
चौक की रंगीनियां तुम और तुम्हारी बेटी का
इंतजार कर रहीं हैं।
खांकी
तुम्हें तुम्हारी खांकी समेत ऐसी खाक में मिलाऊंगा
कि तुम्हारे अपनों को तुम्हारी राख तक नसीब नहीं होगी ।
बहुत उपर
अब न तो मुझे कुछ पाने की चाहत है और
न ही कुछ खोने का डर क्यों कि मैं अब इन दिनों से
आज़ाद हो कर बहुत उपर उठ चुका हूँ ।
तुम्हारे पास
पाने के लिए कोई वक़्त फ़िक्स नहीं है, मगर
खोने के लिए तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है।