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सोमवार, 26 नवंबर 2018

असली धुन

आज लोगों के अंदर सुनने की चाह बहुत बढ गयी है । जहाँ  देखिये और सुनाओ यार , और कुछ कहिये । शायद यह लोगों का तकिया कलाम (टाईटल ) हो गया है जो बक देते हैं ।
यह सिलसिला ऐसा नहीं है कि एक बार मिले  सुने सुनाए और बात खतम । अगर एक दिन मे हजार बार मिलो तब भी यह सवाल नाचने लगता है, सारा दिन बैठे रहिए तब भी चलता रहता है ।
आखिर क्यों ?
सभी कुछ न कुछ बकते रहते हैं । मैं भी कुछ सुना सकता हूँ मगर मैं मौन व्रत ज्यादा रहना चाहता हूँ और रहता भी हूँ , सिर्फ इस लिये कि मैने देखा है।
सुनने वाला भी और सुनाने वाला भी दोनो जीवन भर यही कर्म करते हैं , और कुछ नहीं कर पाते , जहाँ से चले वहीं आ गये ।
मैं अपना मौन ( खामोशी ) इस लिए नहीं तोड़ता कि मुझे प्रेक्टिकल में यकीन और विश्वास है ।
हां अगर कोई प्रैक्टिकल करने वाला हो तो उसे बताया जाये , कुछ सुना जाये कुछ सुनाया जाय तब मजा आता है ।
जब कि करने वाला आदमी जो प्रैक्टिकल मे रहता है और प्रैक्टिकल मे ही विस्वाश भी करता है , तब तो वह न ज्यादा सुनेगा और न ही ज्यादा सुनायेगा वह ज्यादा से ज्यादा करता जाएगा ।
उसके काम ही सुनाते हैं कर्म की सफलता से आती हुई धुन को सुनिये और यह महसूस करिये कि उसके कर्मो से क्या सुनाने की आवाज (धुन ) पैदा हो रही है ।

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