बहुत ज्यादा पढने के बाद इस दुनिया को कुछ हद तक
समझ पाया। पूरी तरह से समझने के लिए प्रेक्टिकल में
होने की जरुरत महसूस हुई। मगर उतना पैशा नहीं। कुछ लोग जो विदेशों में कमाने गये वो वही तक समझ पाए तो कुछ लोग आस पास के दो चार कंट्री और घूम समझ लिए लेकिन अनपढों ने ज्यादा समझा जैसे राहुलसांकृत्यान।
पैसे की जब बात आई तो खुद को संभालने में लगना पड़ा खुद को कुछ संभाला तो परिवार को देखना पड़ा।
परिवार को कुछ देखा तो बच्चों को संभालना पड़ा ।
कभी खुद अपने देश को ही पूरी तरह से घूम कर देखने
समझने का न अवसर ही मिला और न तो हालात ही बन पाए। जहां रहे उतने में ही दुख सुख को समझते रहे। इतने में ही कुछ की उम्र कट गयी। कुछ हमेशा के लिए दुनियां ही छोड़ गए तो कुछ अधेड़ हो गये।
अधेड़ो का क्या उनके तो मनसूबे भी अब पस्त हो चुके हैं। भविष्य तो अंधेरे में बच्चों और नवजवानों का है।
जिन्हें गुलाम बनना है या गोलियों का शिकार होना है।
वो भी बीसवीं शताब्दी के आधुनिक युग में पाश्चात्य सभ्यता में जीने के लिए मजबूर करने का कानून वो भी अपने ही देश में अपने ही देशवासियों के लिए।
इसका अंजाम क्या होगा ?
मुर्खो के विचार हैं या प्रखर कल्पनाशीलता की ?
hello my dear friends. mai javed ahmed khan [ javed gorakhpuri ] novelist, song / gazal / scriptwriter. mare is blog me aapka dil se swaagat hai.
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मंगलवार, 28 जनवरी 2020
दुनियां को समझने की जरूरत
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