लगभग पांच साल से मैं अपने बेडरुम में ही सोता हूं।
गोरखपुर जिले के ग्रामीण छेत्र से हूं गांव में ज्यादा तर
लोग बाहर खुले आसमान के नीचे ही सोते हैं ।
पांच साल पहले मेरी भी यही दशा थी । घर के अंदर
सोना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था , खुले वातावरण
में प्रक्रित की ताज़ी हवावों और मेरे गार्डन में लगी बेईल
रातरानी , रजनीगंधा और तमाम फूलों की खुशबू के लिए
अक्सर मैं छत पर चला जाया करता था जहाँ बारह एक
बजे तक गानों का आनंद लिया करता था ।
कभी कभी नीद आ जाने से गाने रात भर चलते रहते थे
नींद खुलने पर बंद करता था । गीत सुनना आज भी मुझे
पसंद है आज भी रात में दो तीन घंटे सुनता ही हूं।
प्रक्रित प्रेमी भी हूं ये शौक बचपन से है मुझे ।
अप्रैल , मई और जून के महीने में यहां भयंकर गर्मी पड़ती है जबसे होश संभाल है भयंकर गर्मी ही देखा ।
कल मैं अपने फार्म हाउस पर गया था वहां मेरा एक आदमी परमानेन्ट रहता है मैने अपना बिस्तर रुम से बाहर बरामदे में लगवाया रात को बारह बजने के बाद मुझे ठंड लगने लगी इतनी की मोटा कंबल ओढना पड़ा ।
सुबह में जब उठ कर देखा तो ओस की बूंदे भी पडी हुई थीं इस मई के महीने में अक्टूबर के लास्ट और नवम्बर के पहले हफ्ते जैसी ठण्ड मुझे आश्चर्य में डाल दिया।
जब की ऐसा मैंने कभी नहीं देखा ।
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