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सोमवार, 18 मई 2020

घरेलु

पहले लोगों के पास घर था मगर घरेलु नहीं थे ।
सुबह बच्चों के उठने के पहले घर छोड़ देते थे और
अक्सर उस वक़्त लौटते थे जब बच्चे सो जाते थे ।
अपना ही घर,  घर नहीं रह गया था एक किराये पर
 बुक किया हुआ होटल का रुम जिसमें पहुंचने पर हर 
तरह की सुविधा उपलब्ध हो जाती है और फिर सुबह 
रुम छोड़ देना पड़ता है ।
लाकडाउन के बाद चार पांच दिन तक बच्चे से लेकर
बूढ़े तक हर लोग काफी परेशान थे बे वजह भागदौड़
करते रहे जिसका नतीजा पुलिस वालों ने अच्छी तरह से
पिटा भी मगर अब धीरे धीरे सभी लोगों को अपने उसी घर में जगह मिल गई है लोग घरों में सेट हो गये हैं और घर वाले भी उन्हें अपना लिए हैं। 
अब जाकर लोग पुरी तरह से घरेलु और जिम्मेदार हुए हैं 
घर क्या होता है कैसे चलता है जरूरतें क्या होती हैं अब 
अच्छी तरह से समझ में आया। 
बच्चों को भी स्कूल का टेन्शन नहीं ये भी फ्री हैं बच्चों को पिता के पास भरपूर मस्ती , खेलने और एक दूसरे को समझने का अवसर मिला है परिवार क्या होता है इसमें कितना आनन्द है इसे जीने का भरपूर वक़्त मिला है ।

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