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शनिवार, 11 जुलाई 2020

बात

फिल्म जो दिखाएगा वही आप देखेंगे। वहां आप के सवाल सुनने वाला कोई नहीं है और न तो जवाब देने वाला ।
फिल्म की स्टोरी लिखने वाला कोई और होता है । फिल्म को बनाने वाला कोई और होता है और फिल्म में काम करने वाला कोई और होता हैं । यही हाल न्यूज पेपर, मैगजीन, किताबें, टीवी सिरियल्स, टीवी न्यूज इत्यादि की भी होती है । जिसे चुपचाप आप देखते , सुनते या पढते हैं । मगर जब चार लोग बैठ कर आपस में बात करते हैं तब आप खामोशी से न बैठ पाते हैं न किसी की बात पुरी सुन पाते हैं हर किसी के बात का जवाब आप के पास रहता है ।
भले आप को उचित अनुचित का फर्क न समझ में आया हो भले आप के जवाब का सर पैर न हो भले आप को इस बात का ज्ञान न हो कि बात किससे की जा रही है और कौन कर रहा है लेकिन सभी के बातों का जवाब देने का जिम्मा आप ही ले लेते हैं जब की ये गलत है ।
चार लोगों के बैठने पर बात चित तो होना तै है मगर जिससे जो बात कर रहा हो या कुछ पूछ रहा हो तो वहाँ खामोशी जरुरी है कभी कभी जब पहले के पास जवाब नहीं होता तो वो दूसरे से पूछता है । कभी कभी ऐसा भी होता है कि कोई अपनी बात या राय सामूहिक रखता है जिसमें कोई भी अपनी राय या सहमती दे सकता है लेकिन बेहतर तो यही होगा कि जबतक आप से जवाब, राय या सहमति न मागी जाय तबतक आप खामोश ही रहें तो ही अच्छा है बीच बीच में कूद कर अपनी छवि न बिगाडे ।
बात चित करने का ढंग क्या होता है उसे जानें बहुत सारे 
लोग ऐसे भी हैं कि दो लोगों के बीच में यानी आपस में ही अपने आगे सामने वाले की कुछ सुनते ही नहीं अब आप ही जरा सोच कर बताएं कि कैसे बात किया जाए  ? 
समझ में नहीं आता कि ये लोग खामोशी पूर्वक कैसे तीन घंटे फिल्म देख लेते हैं या कुछ पढ लेते हैं ।

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