हर इंसान एक ग्रंथ होता है जिसमें हर तरह के रंग भरे
होते हैं । जिस दिन आप इंसान रुपी ग्रंथ के चेहरे और
दिल को पढने की कला को जान जाएंगे उस दिन से आप उस ग्रंथ को पढना भूल जाएंगे जिसे पढने में अपनी आथी या पुरी जिंदगी गुजारी है । बेबसी और लाचारी आलमारी में पड़े ग्रंथ से नहीं जाती इंसान का माध्यम इंसान ही बनता है । मेरे कहने का मतलब किसी भी थार्मिक ग्रंथ से नहीं है ।
मैंने दुनियां के शिक्षा पद्धति के ग्रंथों की बात की है ।
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