कश्म कश का न था ऐसा कभी आलम पहले ।।
खुश्क पत्तों को जला देती है शोलों की लपट ।
शब्ज पत्तों को भिगो देती है शबनम पहले ।।
कत्रये आब से जल जाएंगे सावन में सजर ।
मैंने देखा न था ऐसा कभी मौसम पहले ।।
मुझ पे थीं जिसकी इनायत बहुत कम पहले ।
आंख उस शोख की हो जाती है अब नम पहले ।।
ज़ख्म भी देने का अंदाज़ नया है जावेद ।
जा ब जा जिस्म पे रख देता है मरहम पहले ।।
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