hello my dear friends. mai javed ahmed khan [ javed gorakhpuri ] novelist, song / gazal / scriptwriter. mare is blog me aapka dil se swaagat hai.
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रविवार, 20 दिसंबर 2020
आप के बाप की भी इंसल्ट कर सकता है
जो आप को अपना समझता है , वो आप की जिंदगी से जुड़ी हुई हर चीज़ को अपना समझता है । जो आप को अपना नहीं समझता , वो आप की इंसल्ट क्या आप के बाप की भी इंसल्ट कर सकता है ।
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डायलॉग
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JAVED GORAKHPURI
शनिवार, 19 दिसंबर 2020
ये कौन है जो मेरा पांव अभी भी पकड़ा है
वक्त ने तोड़ दिया हालात ने भी जकड़ा है ।
ये कौन है जो मेरा पांव अभी भी पकड़ा है ।।
समझ चुका है कि अब मौत ही सजा है मेरी ।
इससे बचने की कोई तरक़ीब लिए अकड़ा है ।।
चलेगी ज़ुबान न आवाज़ गले से निकलेंगी ।
वक़्त इस दुनिया में सबसे ज्यादा तगड़ा है ।।
अजीब लोग हैं यहां सरेआम मुकर जाते हैं ।
ये जाल बुनने वाले आठ पैर के मकडा है ।।
समझ रहे हो तो सब्र कर के जीलेना जावेद ।
यहां सब पतलब परस्ती का सारा झगड़ा है ।।
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ग़ज़ल
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JAVED GORAKHPURI
बुधवार, 16 दिसंबर 2020
इसका भुगतान तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा
जब बादशाहों की हुकूमत थी तब भी देश में गद्दार थे ।
जब नवाबों की हुकूमत थी तब भी देश में गद्दार थे ।
जब अंग्रेजों की हुकूमत थी तब भी देश में गद्दार थे ।
आज लोकतंत्र है । आज किसी बादशाह या नवाब की हुकूमत नहीं है । तो क्या आज देश में गद्दार नहीं हैं ?
आज तो पहले के उन दौर से ज्यादा देश में गद्दार पैदा हो गये हैं ।
1- देश में भाईचारा को खंडित करने वाला कौन है ?
2- देश में जात , धर्म , और मजहबों को बांटने वाला कौंन है ?
3- देश में देश की सही ख़बर न देने वाला कौंन ?
4- देश में जनता के बीच भेदभाव पैदा करने वाला कौंन है ?
इन सवालों के जवाब को पूरा देश जानता है । ऐसे लोगों को देश का गद्दार न कहें तो क्या देश भक्त कहा जाएगा ?
एक मकान को बनाने के लिए बहुत सारे लोगों और बहुत सारे मटेरियल्स की जरूरत पड़ती है ठीक वैसे ही एक देश को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए सभी देशवासियों की आवश्यकता होती है । सभी का अपने अपने स्तर से योगदान होता है । इसमें कहीं कोई धार्मिक भेदभाव नहीं होते ।
किसी भी वर्ग , समुदाय या धर्म को ग़लत नजरिए से न देखा जाए और न तो उनको विशेष रूप से एकिकृत कर के गन्दे ढंग से राजनीत की जाय । सबसे पहले दोषी तो वही लोग हैं जो अपने स्वार्थ के लिए अपने ही देश में अपने ही देश वासियों को जात पात के रुप में उकसाया और दूसरे जाति के लोगों के प्रति नफ़रत की आग बोना शुरू किया , वो भी ऐसा करने के लिए पार्टी का लाइसेंस तक बनवा डाले हैं ।
क्या संविधान में ऐसा कोई नीयम लिखा है कि हर धर्म के लोग अपनी अपनी पार्टी बनायें ?
ऐसी परंपरा शुरू करने वाले लोगों को तो आजीवन कारावास दे देना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसा करने के लिए कोई सोंच भी न सके नफ़रत होती है मुझे ऐसे लोगों से जो लोग धर्मों और जात पात की राजनीत करते हैं ।
अगर मेरी हुकूमत होती तो मैं उनके ऊपर भी राशुका लगा देता जो समाज में कहीं भी किसी से भी जात का नाम ले लेते या चर्चा करते हुए पाये जाते ।
देश आज़ादी के बाद से पुर्वजों ने जो भाईचारा क़ायम कर के चलते रहे हैं उसे पूरी तरह से तो नहीं तोड़ पाये हैं लेकिन जितना टूटा है उसका अंजाम आप के आंखों के सामने है ।
वह दिन दूर नहीं जब हर एक व्यक्ति को महसूस होगा कि उन्माद या बहकावे में आकर मैंने ग़लत किया है ।
हम जिस परिवेश और परिस्थितियों में जीते हैं उसमें सभी वर्ग , समुदाय के लोगों से आपसी भाईचारे का संबंध होता है
जब हमारे पुर्वजों ने नहीं छोड़ा तो हम किसी के बहकावे या उन्मादी बातों में क्यों उल्झें । ये अलग बात है कि आज जो नफ़रत में चूर है लेकिन जिंदगी के कुछ ऐसे मोड़ भी आते हैं
जहां हमें सबके साथ की आवश्यकता होती है । इस बात का हमेशा ध्यान रखना कि आने वाली पीढ़ी तुम्हारे नफ़रत की खोखली जड़ को जिस दिन समझ लेगी उस दिन तुम संसार के सबसे बड़े पागल और देश द्रोही की नज़र से देखे जाओगे वो भी अपने ही लोगों के बीच चाहे वो किसी भी धर्म का हो , शिकारी अपना शिकार कर के निकल जाएगा लेकिन उसका भुगतान तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा ।
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विचारात्मक लेख
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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020
देश से देशवासियों की आखरी लड़ाई
किसान जो लड़ाई लड़ रहे हैं । यही देश से देशवासियों की आखरी लड़ाई है । पुरे भारत वासियों की सिम्पैथी किसानों के साथ जुड़ी हुई है । अब इसी में फैसला हो जाएगा कि " जय " किसके साथ लगाना है और किसके साथ जोड़ कर बोलना है , जय जवान रहेगा , जय बिजनेसमैन होगा या जय किसान रहेगा । अन्नदाता की औकात क्य है ? अन्नदाता का सम्मान कितना है ? इनके लिए कितना किया जाता है ? और अन्नदाता को देश कब कितना और क्या देता है ये भी किसी से छुपा नहीं है । किसान बिना कर्ज लिए भी आत्महत्या करता है और छोटे छोटे कर्ज लेकर भी मरता है और सारी जिंदगी नर्क से भी बदतर गुजारता है लेकिन उन बिजनेसमैनों का क्य जो हज़ारों करोड़ कर्ज लेकर विदेशों में अपनी ज़िंदगी स्वर्ग की तरह काटते हैं ।
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मेरे विचार
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JAVED GORAKHPURI
रविवार, 13 दिसंबर 2020
किसान अपने उगाये हुए सामानों के मुल्य का निर्धारण खुद करें
बहुत सारी चीज़ें ऐसी हैं जिसके मुल्य का निर्धारण गवर्नमेंट ने नहीं बल्कि लोगों ने किया है । होल सेल में भी चोरी और कालाबाजारी होती है । फुटकर रेट में भी चोरी और कालाबाजारी होती है । वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक मशीन और शेर तराज़ू में भी घपलेबाजी शामिल है ।
कहीं से कुछ भी लेंगे तो पैसा तो आप को पूरा देना पड़ेगा जिसमें पच्चीस पैसे भी कम नहीं लेगा लेकिन तौल में आप को सामान पुरा नहीं मिलेगा ।
यहां तक कि डब्बा बन्द सामान एवं पैकिंग में भी पूरा वजन नहीं होता । पच्चीस पैसा तो अब बाजार में नहीं चलता , पचास पैसा भी गायब है । एक रुपये का छोटा वाला सिक्का भी कोई नहीं लेता , कोई भी सिक्का हो अब बैंक वाले भी नहीं लेते ।
बहुत सारे बिजनेस दस , पंद्रह ,और पच्चीस पैसे के प्राफिट पर निर्भर होता है ।
जिस जिस चीज का भी गवर्नमेंट ने मुल्य का निर्धारण किया है । उसमें होल सेलर को ईमानदारी से पालन करना चाहिए लेकिन ये लोग भी कीमत बढ़ाकर लेते हैं । अब आप सोंचे कि फुटकर विक्रेता क्या करते होंगे । फुटकर वाले तो अपनी मनमानी करते हैं । जो चाहें रेट लगायें ये उनकी मर्जी ।
मार्केट में अगर सौ दुकान है तो पक्की और प्रिंटेड बिल देने वाले सिर्फ एक या दो लोग ही मिलेंगे बाकी निन्यानबे टैक्स की चोरी करते हैं या टैक्स फ्री हैं ? शायद इसी लिए पक्की बिल नहीं देते ।
मार्केट में किसी भी चीज का मीट हो उसके मुल्य का निर्धारण कौंन करता है ?
मार्केट में कोई भी शब्जी हो उसके फुटकर विक्रेता के मुल्य का निर्धारण कौंन करता है ?
जब फुटकर विक्रेता मुल्य का निर्धारण स्वयं करते हैं तो एक किसान अपने द्वारा उपजाये हुए अन्न की कीमत को क्यों नहीं निर्धारित कर सकता , दलहन फुटकर विक्रेता के वहां पंचानबे रुपये से लेकर एक सौ तीस रुपये तक है ।
शब्जी चालिस रुपये से लगाये अस्सी रुपये तक है ।
आप अगर जिम्मेदार व्यक्ति हैं तो आप को सभी चीजों के कीमतों का पता है । अब आप बताएं कि अगर आप के पास रोटी और चावल नहीं है तो शब्जी और मीट किस काम के अगर आप मार्केट में जाएंगे तो सबसे सस्ता आप को आटा और चावल ही मिलेगा इस लिए मैं किसानों से यही कहना चाहूंगा कि वो अपने अनाज की कीमत के रेट को भी स्वयं निर्धारित कर लें जैसे गेहूं सौ रुपया किलो कर दें , चावल ,एक सौ पच्चीस , आटा एक सौ बीस इसी तरह जितनी भी चिजें उगाते हैं सभी चीजों के मुल्य का निर्धारण खुद ही करें । जिसे आवश्यकता होगी वो खरीदेगा इसमें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है । जब आप उगाएंगे तभी तो लोग पाएंगे , कोई जबरदस्ती नहीं ले सकता आप अपनी मेहनत और क़ीमत को पहचानें ।
जबतक आप खुद रेट का निर्धारण नहीं करेंगे तब तक कोई करने वाला नहीं है । जब बड़े बड़े बिजनेसमैन आप से सस्ते रेट पर लेकर स्टाक करेंगे तो उनकी मर्जी पर निर्भर होगा कि वो किस रेट पर बेचेंगे या कोई प्रोडेक्ट तैयार करेंगे ये उनकी मर्जी पर है ।
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विचारात्मक लेख
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JAVED GORAKHPURI
गुरुवार, 10 दिसंबर 2020
मुंशी प्रेमचंद की कहानियों जैसी सच्चाई है डॉ तालिब गोरखपुरी की शायरी में
नहीं छोड़ेगी ज़िंदा बदनसीबी मार डालेगी ।
मुझे लगता है ऐ तालिब ग़रीबी मार डालेगी ।।
या ख़ुदा घबरा गया हूं गर्दिशे अइयाम से ।
इससे बेहतर है कि दे दे मौत ही आराम से ।।
या इलाही ये मेरा कैसा मुकद्दर हो गया ।
हाथ में आते ही मेरे सोना पत्थर हो गया ।।
सारा घर चूता रहा बर्सात में ।
न दिन में बच्चे सो सके न रात में ।।
हो गयी दुनियां मेरी बर्बाद कैसे चुप रहूं ।
और क़ातिल है अभी आज़ाद कैसे चुप रहूं ।।
भूखे , प्यासे और नंगे भर रहें हैं सिसकियां ।
सुन के मज़लूमों की ये फरियाद कैसे चुप रहूं ।।
ग़रीबी का दर्द दर्शाते हुए ये शेर मशहूर शायर व अदीब डॉ तालिब गोरखपुरी की शायरी से चुने गए हैैं ।
इस तरह के हज़ारों शेर उनकी ग़ज़लों में मौजूद हैं ।
अबतक इनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । जिन में चंद मशहूर किताबों के नाम निम्न लिखित हैं ।
1- उजाले उनकी यादों के ।
2- दास्तांने फिराक ।
3- सितारों से आगे तथा अन्य ।
अबतक इनको अदबी ख़िदमात के लिए अदबी सोसायटीयों ने बहुत से एवार्ड से नवाज़ा है । जिनमें काबिले जिक्र एवार्ड 1- मिर्ज़ा ग़ालिब एवार्ड
2- फिराक गोरखपुरी एवार्ड
3- कृष्ण बिहारी नूर एवार्ड
4- कैफ़ी आज़मी एवार्ड भी शामिल हैं ।
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मेरा विचार
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JAVED GORAKHPURI
बुधवार, 9 दिसंबर 2020
अपने साथ बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया
मुझे तो ऐसा लगता है कि जैसे देश का मोडिफिकेशन 80% हो चुका है । लेकिन कोई भी चीज देश हीत या समाज हित के पक्ष में नहीं दिख रही है। बेरोजगारी पहले से और बढ़ गई है , लूट , रहजनी , के साथ क्राईम भी बढ़ गया है ।
कोरोना से पहले कुछ कुछ प्राब्लम थी लेकिन कोरोना अपने साथ बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया , जिसने हर एक व्यक्ति को परिवर्तित कर के रख दिया , जिसे आप कहीं भी देख सकते हैं
पहले का जीवन काफी हद तक सामान्य था , जन मानस के हालात बनते थे और बिगड़ते थे , लेकिन आज बिगड़ने के सिवा बनने का कोई रास्ता नहीं है ।
कोरोना काल में खाद्य सामग्री डोर टू डोर लोग बेचते थे और सस्ता था । हर लोगों के लेने के लायक़ था , लेकिन कोरोना में जैसे ही ढील मिली सामानों की कीमत ने आसमान छू लिया है । दैनिक आवश्यकताओं में कोई भी चीज ऐसी नहीं है कि जिसकी क़ीमत में गिरावट आई हो , यहां तक कि यत्रा भाड़ा भी डबल तिबल हो चुका है । कोरोना महामारी थी , जो सिर्फ इन्शानों पर थी न कि सामानों पर , कोरोना में आज जो ढील दी गई है । इससे ऐसा नहीं है कि देश और देश की जनता मालामाल हो गई है । हर त्राशदी के बाद सब-कुछ सामान्य होने में काफ़ी समय लग जाता है । मगर कीमतें बढ़ाना , यात्रा भाड़ा बढ़ाना ये टेंडेंसी नहीं समझ में आती ।
छोटे से लेकर बड़े वाहनों को चलाने का एक नियम बनाया गया था जिससे यात्रा करने में भी यात्रीयों के बीच दूरी बनी रहे जैसे- पैर से चलाने वाले रिक्शा पर एक सवारी , तीन चक्का टैम्पू में सिर्फ दो लोग वो भी पीछे सीट पर , चार चक्का वाहन वाले सबसे पीछे दो बीच वाली सीट में दो और
सबसे आगे एक चालक और एक पैसेंजर इसका पालन सिर्फ फस्ट अन लाकडाऊन में हुआ था जिसके कारण यात्रा भाड़ा बढा था परन्तु सेकन्ड अन लाकडाऊन से कोरोना से पहले वाला नियम लागू लोगों ने खुद कर लिया है । किसी भी नियम का या डिस्टेंसिंग का या मास्क का कोई पालन नहीं है । जब गाडियां ओवरलोड और कस कर चलने लगीं हैं तो किराया भी कम हो जाना चाहिए मगर पैसा ज्यादा दे देना भलाई या मजबूरी जो भी समझते हों लेकिन नियमों का पालन करना जरूरी या मजबूरी नहीं है ?
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मंगलवार, 8 दिसंबर 2020
जिसकी पाकेट भरी होती है
लोग कहते हैं कि परदेश में अपने पराए हो जाते हैं । और पराए अपने हो जाते हैं । सारे रिश्ते बन जाते हैं मां , बाप भी मिल जाते हैं । लेकिन ये सब खाली पाकेट नहीं होता , ये सब उसके साथ होता है , जिसकी पाकेट भरी होती है । ये सब यहां भी होता है , अगर आप की पाकेट भरी हुई है ।
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डायलॉग
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JAVED GORAKHPURI
सोमवार, 7 दिसंबर 2020
प्रकृति का सौन्दर्य
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उसे भी जाने के हज़ार रास्ते हैं
अगर आप के पास पैसा आने का रास्ता है , तो वो भी आएग , जिसे आप चाहते हैं । और उसे भी आने का रास्ता है । जिसे आप ने कभी सोचा ही नहीं ।
अगर आप के पास पैसा आने का रास्ता नहीं है । तो उसे भी जाने के हजार रास्ते हैं । जिसे आप अपनी जिंदगी से कभी जाने देना नहीं चाहते ।
पाने और खोने का जादू या चमत्कार आप के अंदर नहीं है । सब आप के पैसे के अंदर है ।
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