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सोमवार, 4 नवंबर 2019

हम उस देश के वासी हैं

हम  उस  देश  के  वासी  हैं   ।
जहां इंसान को बेचा जाता है ।।
पांच रुपये के ख़ातिर भी  ।
ईमान को बेचा जाता है  ।।

जात धर्म और लिंग भेद में ।
नफ़रत  की  दीवारें  हैं     ।।
सत्ता की कुर्सी के ख़ातिर  ।
जान  को  बेचा  जाता है  ।।

किसने कैसे देश चलाया  ।
किसने कैसे देश बचाया  ।।
उनको याद दिला कर के  ।
पहचान को बेचा जाता है ।।

तुम  जो  हो, खुद  में  हो   ।
मुझको तुमसे क्या मतलब ।।
अपना कह कर के ही  तो  ।
सम्मान को बेचा जाता है  ।।

अंध विश्वास कि माया है  ।
पाखंड देश पर छाया है   ।।
रातो रात अमीर बना दे जो ।
भगवान को भी बेचा जाता है ।।

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