हम उस देश के वासी हैं ।
जहां इंसान को बेचा जाता है ।।
पांच रुपये के ख़ातिर भी ।
ईमान को बेचा जाता है ।।
जात धर्म और लिंग भेद में ।
नफ़रत की दीवारें हैं ।।
सत्ता की कुर्सी के ख़ातिर ।
जान को बेचा जाता है ।।
किसने कैसे देश चलाया ।
किसने कैसे देश बचाया ।।
उनको याद दिला कर के ।
पहचान को बेचा जाता है ।।
तुम जो हो, खुद में हो ।
मुझको तुमसे क्या मतलब ।।
अपना कह कर के ही तो ।
सम्मान को बेचा जाता है ।।
अंध विश्वास कि माया है ।
पाखंड देश पर छाया है ।।
रातो रात अमीर बना दे जो ।
भगवान को भी बेचा जाता है ।।
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