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सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

संगठित परिवार

एक संगठित परिवार में जो औलाद पैसा कमाता है उसकी मान्यता ज्यादा होती है । हर लोग उसी के इर्द गिर्द मंडराते हैं । हर कोई उसी को खोजते हुए और उसी से मिलने के लिएआते हैं । लेकिन अगर घर रह रहे व्यक्ति से कोई मिलने आ जाये तो पीठ पीछे यह जरूर सुनाया जाता है कि " अरे चूतिये हैं साले..... लोफरों का साथ है अब क्या करियेंगा " जब की बिना सच्चाई जाने वो कमाने वाला भी पूछता है कौन था ? सवाल कर के बिना जवाब सुने यह बड़े आसानी से कह देता है कि "चुपचाप घर रहो लोफरों का साथ छोड़ दो आज के बाद मैं किसी के साथ देखना नहीं चहता और न दरवाजे पर इन चूतियों और लाखैरों को मैं देखुं यही है तुम्हारे नाजायज़ पैसा फूकने का अंजाम मैं मर मर कर पैसा भेजु और तुम उसका गलत इस्तेमाल करो " जब की उस कमाने वाले को नहीं पता कि एमरजेंसी में यही लोग काम आते हैं । आप का पैसा बाद में आता है लेकिन उससे पहले यही लोग आते हैं खैर वो सही कहे या गलत सब ठीक है सभी बे हिचक स्वीकार भी कर लेते हैं । लेकिन जो औलाद पैसा नहीं कमाता उसकी कोई औकात नहीं होती अगर वो गलत को गलत और सही को सही कहे तो भी उसकी बात को कोई अहमियत नहीं दी जाती और न तो कोई सुनने को तैयार होता है इसकी हर बात बकवास और फाल्तु लगती है मगर जिस्मानी और भागदौड़ के सारे काम घर रह कर इसी को करना पड़ता है । घर को देखते हुए सभी सामाजिक, पारिवारिक , हित , मीत और रिश्तेदारी सभी को समय समय पर देखना है । अगर खेत बारी है तो उसमें भी लग कर पसीना बहाना पड़ता है अगर गाय गोरु है तो उसे भी संभालना पड़ता है । यानी नीव का ईट जो घर है वही बनता है ।
जहां जो खर्च आता है वो मिलता तो जरूर है मगर हर चीज़ का हिसाब भी देना पड़ता है ।
"जब मैं कमा रहा हूँ और पैसा दे रहा हूँ तो तुम्हें कहीं कमाने जाने की क्या जरूरत है घर पर रहो घर देखो, घर पर भी तो किसी का रहना जरुरी है" इन बातों से और सभी के दबाव से उसे अपने जीवन को अपने आजादी से जीने का अवसर नहीं मिलता यूं कहीए कि उसकी सारी इच्छाएं मार कर आजादी भी छीन ली जाती है ।
एक समय ऐसा भी आता है जब घर रहने वाले को नाकारा साबित कर दिया जाता है और उसी घर में उसे अलग भी कर दिया जाता है ।
अलग करने पर उसके हिस्से में गाय, गोबर और खेती आती है मगर जो काम रहा था उसके हिस्से में लम्बी फोर व्हीलर शान्दार बंगला और बैंक बैलेंस आता है जो पहले ही वो सब अंडर ग्रांउड बनाता रहा ऐश करने के लिए उस नीव के ईट को अलग तो करना ही पड़ेगा वरना सब में बराबर की हिस्सेदारी भी देनी होगी किसी कि जिंदगी बर्बाद कर के अपना काम निकालना कहां का न्याय है ।
खुद को अकेले छल से राजा बन जाना किस काम का जिसके सुख को भोगने में जब अपने ही न हों। 

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