आग को आग लिक्खूं पानी को पानी लिक्खूं ।
मैं की शायर हूं तो क्यूं झूठी कहानी लिक्खूं ।।
जिन्को सुन्ते ही बुझ उठते हैं मुहब्बत के चिराग ।
क्या जरुरत है वही बात पुरानी लिक्खूं ।।
हज़ारों शक्ल में देखा है रात दिन तुझको ।
जिंदगी बोल तेरे कितने मआनी लिक्खूं ।।
रंग सब आप पे सजते हैं पहन लें जो भी ।
सब्ज या लाल लिक्खूं ज़र्द या धानीं लिक्खूं ।।
मेरा दावा है मिला है न मिलेगा " जावेद " ।
कौन है जिसको की मैं आप का सानी लिक्खूं ।।
1 टिप्पणी:
वाह।
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