Translate

सोमवार, 29 मार्च 2021

समाज में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं

लेने और देने के बीच सिर्फ दो ही लोग होते हैं । एक देने वाला और एक लेने वाला । दे कर जब लेने की जरूरत पड़ती है , तो कभी कभी आठ दस लोगों को बैठा कर पंचायत भी करनी पड़ती है । इस लिए जब भी किसी को कुछ दो तो उसे वापस पाने की मत सोंचो ।
किसी को कुछ देना है , तो तभी दो जब आप की जरूरत से ज्यादा हो ।
दुनियां में बहुत कम लोग हैं , जिनके पास जरूरत से ज्यादा है । उसके बाद भी उनके अंदर कमी का एहसास बना रहता है । ऐसे लोगों तक हर किसी की पहुंच नहीं होती ।
आम जीवनचर्या के बीच जीते हुए आप को ऐसे लोग भी मिलेंगे जिन्हें इनकार करना आप के लिए मुश्किल हो जाता है । ऐसी परिस्थितियों में आप अपनी चीजों का आंकलन कर लें कि क्या मैं देने के योग्य हूं या नहीं ?
जितने से आप का काम चल जाए और आप को किसी प्रकार की कठिनाइयों का सामना भी न करना पड़े साथ ही मेरे दिये हुए धन मुझे वापस भी न मिले तो भी कोई बात नहीं है । तब आप के पास जो शेष बचता है , उसमें से कुछ अंश को आप बताएं कि मैं इतना दे सकता हूं ।
अगर आप को वो धन वापस मिलता है , तो आप उसे उपहार समझ कर रख लिजिए और यदि नहीं मिलता है तो उसे यह सोंच कर भूल जाएं कि वह मेरा नहीं उसी का था जो ले गया या , यह भी सोंच सकते हैं कि मैंने उसकी मदद की है ।
मदद कभी वापस पाने के लिए नहीं की जाती । मदद वही करता है , जो मदद करने के योज्ञ्य होता है ।
अगर आप देने के योज्ञ्य नहीं है , तो आप प्रेम से कह सकते हैं कि अभी में इस योज्ञ्य नहीं हूं या इस क्षमता में नहीं हूं ।
दुःखी कर देने वाली बात कभी न करें ।
मैंने कुछ अंश देने की बात इस लिए कही कि उसमें से जो बाकी अंश बचते हैं उन अंशों में कुछ अपने और अपने करिबियों का भी हक़ बनता है । जिन्हें अचानक अगर जरूरत पड़ गई तो उन्हें भी निराश न लौटना पड़े ।
इन सारे कामों को अपने आप को किसी समस्याओं में उल्झा कर करने की जरुरत नहीं है । सबसे पहले खुद को देखें फिर लोगों को देखें ।
समाज में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं , जिनमें कुछ अपने भी होते हैं । वे लोग हर परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने आप को जिवित रखते हैं । ऐसे लोग कभी भी किसी भी परिस्थितियों में आप से सहयोग की बात नहीं करेंगे ।
यहां आप को खुद पता करना होगा कि किसे वास्तव में इसकी आवश्यकता है । उन्हें प्रेम से ऐसे सहयोग करें कि उन्हें लगे कि इस दुनियां में मैं अकेला नहीं हूं । मेरे भी अपने लोग हैं , जो अपनो के बारे में सोचते हैं , और उनका पता भी करते हैं । इससे करिबियां बढ़ती हैं , और अपनत्व भी बढ़ता है । वर्ना हर आदमी एक दूसरे के लिए आम आदमी हो जाता है । जिसकी कोई अहमियत , औकात , फ़र्ज़ , कर्तव्य , हक़ कुछ भी नहीं रह जाता , अजनबी और अंजान की तरह हो कर रह जाता है ।
रिश्तों का , पहचान का , अपने पन का सिर्फ नाममात्र रह जाता है । जिसका इस दुनियां में कोई मोल नहीं ।

कोई टिप्पणी नहीं: