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गुरुवार, 17 सितंबर 2020

रिशी

ये दुनियां हमसे पहले भी थी और हमारे बाद भी रहेगी ।
हमसे पहले जैसी थी वैसी आज नहीं है और आज जैसी है वैसी आगे नहीं होगी ।
जो चले गये उन्हों ने आज के दौर को नहीं देखा हमारे जाने के बाद हम लौट कर कल के दौर को देखने नहीं आ पाएंगे हर चीज़ का अपना अलग दौर होता है ।
इसी दुनियां में एक ऐसा भी दौर था जब लोग दो तीन हजार साल तक रह कर गये उसके बाद सैकड़ों साल जीने वाले लोग भी आए और अब चालिस, पचास बहुत ज्यादा तो अस्सी साल तक जीने वालों का दौर चल रहा है । मैने एक कहानी पढी थी उसमें एक रिशी थे जो ताड़ के पेड़ के पत्ते जिसे डम्फा भी कहा जाता है उसी का छप्पर बना कर उसी में रह रहे थे । उसी रास्ते से एक दूसरे रिशी कही जा रहे थे जब उनकी नजर उस छप्पर पर पड़ी तो वो छप्पर के पास गये उन्होंने देखा एक आदमी उसमें सो रहा था ।
रिशी के खांसने पर पहले रिशी जो सो रहे थे वे आहट पाकर उठ कर बैठ गये देखा सामने कोई आदमी खड़ा है तुरंत ही उन्हें बैठने को कहा फिर उन्हें पानी पिलाया पानी पी लेने के बाद इन्हों ने कहा कि आप इस पत्ते की जगह एक छोटा सा घर क्यूँ नहीं बना लेते तो रिशी ने कहा कि मैं डेढ हजार साल इसी पत्ते के नीचे गुजार चुका हूँ और अब बचे हुए डेढ हजार साल में क्या होगा इसे छोड़ कर जाना ही होगा अगर पांच दस हजार साल की जिंदगी होती तो कुछ सोंचता खैर आप बताओ आप का घर कहां हैं ?
इस बात पर आने वाले रिशी ने कहा कि मैं तो दो हजार साल से सिर्फ इस पृथ्वी पर घूम रहा हूँ पेड़ों के नीचे रात गुजार लेता हूँ सोचा कहीं स्थाई आप की तरह ठहर जाऊं मगर अब एक हजार साल के लिये क्या रुकूं इसे भी शैर कर के गुजार दुंगा यह कहते हुए खड़े हो गये चलते वक़्त उन्होंने कहा कि इस एक हजार साल में आगर इधर से फिर गुजरना हुआ तो जरूर मिलुंगा। 
अब सोंचिए कि तीन हजार साल की उमर उन लोगों के लिए कुछ भी नहीं थी जिसकी वजह से उन लोगों ने कुछ भी नहीं बनाया और आज आप की उमर कितनी हो सकती है ये आप को एहसास है और इतनी ही उमर में आप को सब कुछ चाहिए भले ही सारी उमर अपनी इच्छाओं को मारना पड़े ।

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