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मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

चल - अचल संपत्तियों का संचय करना

इज्जत , दौलत , शोहरत , सुख - दुःख , चैन - आराम , फुर्शत , तन्हाई , व्यस्तता , मुहब्बत , रुसवाई , मौत , बीमारी , सेहत , अमीरी , ग़रीबी , जमीन , मकान , ज़ेवर , औरत , औलाद , रिश्ते , नाते , दोस्ती , व्यवहार आदि इत्यादि जो कुछ भी है । न तो इसे जाने से रोक पाओगे और न ही इसे आने से रोक पाओगे ।

वक़्त और हालात के मुताबिक अल्लाह रब्बुल इज्ज़त जब चाहें  दें और जब जहें छींन लें । ज़िन्दगी में इसका आना और जाना आप के बस की चीज़ नहीं है ।

ऊपर बताए गए उदाहरण और इसके अलावा भी बहुत सारी चीज़ें हैं । जो आप की अपनी नसीब या फ़िर आप से जुड़े हुए आप के अपनों के नसीब से मिलती हैं । जिसमें उनका भी हिस्सा है , जिन्हें आप नहीं जानते ।

ऊपर बताई गई चीजें आप के पास से उस वक्त चलीं जातीं हैं जब आप किसी का हक़ मार लेते हैं , या आप किसी को उम्मीदें धरायें और उसकी उम्मीदों को तोड़ दें , या आप जान बूझ कर मदद मांगने वाले को , आप की छमता होते हुए भी उसे खाली हाथ वापस कर दें ।

चल-अचल संपत्तियों का संचय करना माया और लालच का दूसरा रुप है । इसका उपभोग आप के भाग्य में नहीं है ।
अल्लाह ये संचय आप के माध्यम से किसके लिए और किस लिए करवा रहा है , यह आप मरते दम तक नहीं समझ सकते ।

भारत के मशहूर शायर ( राज़ आज़मी ) जो मेरे दोस्तों में सबसे ज्यादा उम्र के हैं , मगर दिलजोई और हंसी-मजाक में किसी से कम नहीं हैं , काफी सेंसिटिव भी हैं । इनका एक शेर मुझे अक्सर याद आ जाता है -

वहीं मौत आई है मेरी खुदी को ।
जरुरत जहां हाथ फैला गई है ।।

अर्थात-  मेरी अंतरात्मा , मेरा ज़मीर उस वक्त मर जाता है ।जिस वक़्त मेरी जरुरतें किसी के आगे हाथ फैलाने पर मजबूर करतीं हैं ।
लेकिन जो खाली हाथ वापस कर देता है , सोचो वो कितना मरा हुआ होगा ।

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