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बुधवार, 18 मार्च 2020

हकदार

तमाम लोगों को अपना ही पेट भरना मुश्किल होता है। 
तमाम लोग अपने और अपनों का पेट भरने के लिए 
दिन रात एक किये हुए हैं। 
तमाम लोग शादी, पार्टी, उत्सवों , में अपने लोगों को रिश्तेदारों और परचितों को निमन्त्रित कर के पेट भरते 
और भरवातें हैं पेट भरने के मामले में यहीं तक शदियों 
से सिमटे हुए हैं लोग। 
कुछ लोग हैं जिन्हें उनकी तलाश रहती है जिन्हें अपने ही पेट को भरने का कोई रास्ता नहीं ।
एक बहुत बड़ी संख्या है जिनका अपना कुछ भी नहीं। 
कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास जरुरत से ज्यादा सब 
कुछ है ऐसे लोगों में निन्यानवे परसेन्ट लोग उनके बारे में 
नहीं सोंच पाते हैं जिनके पास कुछ भी नहीं है। 
जिनके पास अपना कुछ भी नहीं उनकी आस हमेशा उन
लोगों में लगी रहती है जिनके पास जरुरत से ज्यादा सब कुछ है मगर निन्यानवे परसेन्ट लोगों को तिरसकार के सिवा कुछ नहीं मिलता। 
अपनी अमीरी की दुनिया से निकल कर जरा उन्हें भी 
देखें जो रोड़ के किनारे मंदिर के सीढियों पर मस्जिद के गेट पर वीरानों में भटकते हुए हाथ फैलाते हैं। 
कभी होटल के बाहर इस आशा में खड़े रहते हैं कि कोई 
आएगा और उन्हें भी खाना खिला कर पेट भर देगा। 
एक इंसान एक इंसान के सामने हाथ फैलाए तो फिर इंसानियत कैसी । 
वो इंसान इंसान नहीं जो एक इंसान को खाली हाथ वापस कर दे। मुझे मेरे मित्र मशहूर शायर राज आजमी साहब का एक शेर याद आ जाता है कि 
वहीं मौत आई है मेरी खुदी को। 
जरूरत जहां हाथ फैला गई है।। 
वह तो हाथ फैला कर मर गया मगर आप खाली हाथ वापस कर के क्या कहलाएंगे कभी खुद से सवाल किया ?
काश अगर आप उसकी जगह होते और आप से जब कोई कहता कि आगे बढो कुछ नहीं है या कहीं और देखो तो कैसा महसूस होता। 
अपनी औकात के नीचे के लोगों पर हमेशा नजर बनाए 
रखिए दिल से दुआएं इन्ही से बिन मांगे मिलेंगी अपने बराबर के लोग पेट भरने के लिए हमेशा तैयार हैं लेकिन 
कभी दुआ नहीं देते। 
इतने गिरे हुए हो कि खुद कहते हो कि दुआओं में याद 
रखिएगा अरे आप खुद ऐसा करें कि अगला आप को दुआ देने के लिए मजबूर हो जाए। 
दिल खोल कर खर्च करो मगर उनके ऊपर जो उसके असली हकदार हैं। 
मनुष्य वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए जिए और मनुष्य के लिए मरे। 


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