हमारा देश अध्यात्म गुरू रहा है और रहेगा भी।
इसमें हिन्दू , मुस्लिम , सिख, ईसाई, जैन, पारसी
इत्यादि सभी वर्गो से सन्त महात्मा हुए हैं।
आज भी हैं और आगे भी होते रहेंगे।
आज हम पुर्वजों की प्रथा छोड़ कर ज्यादा तर
वैग्यानिक विधियों पर आधारित होते जा रहे हैं।
हमें अपनी सदियों पुरानी आध्यात्मिक परंपरा को
कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
इसमें लींन रहते हुए वैग्यानिक आविश्कारों का भी
उपयोग करें।
पहले जब कोई सुविधा नहीं थी तब भी महामारियां
आती थी और ऐसी विकराल रुप में कि गांव का गांव
खाली हो जाता था। उस वक़्त लोग हैजा ताऊन से
लेकर ओबा माई तक को तंत्र मंत्र कुछ टोटके और
दुवा ताबीज से छुटकारा दिलाते थे।
बचपन में सुने हुए ये वाक्य -
जा तुहके ओबा माई ले जाएं।
ओबा के मुंहे में चल जइते त संतोष मिल जात।
बहुत ही बैकवर्ड गांवों में आज भी ऐसे वाक्य सुनने को
मिल ही जाते हैं।
अन्त में मैं सभी धर्मों के गुरूओं संतों महात्माओं ओझा
सोखा से यही कहूंगा कि अपने अपने ग्यान और रिति
रिवाज के मुताबिक इस महामारी रूपी ओबा माई को
मानकर भगाने की कोशिश करें ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें