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बुधवार, 23 दिसंबर 2020

एक दिन इस दुनियां को छोड़ना तो है ही

बहुत अच्छी दुनिया है । 
बहुत सारे स्वाद हैं । 
बहुत तरह के लोग हैं । 
बहुत तरह के आनन्द हैं । 
बहुत सारे सपने हैं। 
बहुत सारी ख्वाहिशें हैं । 
बहुत ही आकर्षक और आस्चर्य जनक भूल भुलैया है । दुःख है ,
सुख है , 
हंसना भी , 
रोना भी , 
अपने भी हैं । 
अपनत्व भी है । 
और प्रेम भी है । 
बचपन भी है । 
लड़कपन भी है । 
जवानी भी है । 
बुढ़ापा भी है । 
यहां स्वर्ग भी है । 
यहां नर्क भी है । 
सब कुछ तो है । 
झूठे को सच्चा भी किया जाता है 
और सच्चे को झूठा भी किया जाता है । 
सिर्फ एक सच्चाई है , 
जिसे कभी कोई झुठला न सका 
और न तो कोई झुठला पाएगा , 
वो है मौत । 
सब कुछ होने के बाद भी अमरत्व यहां नहीं है । 
कोई अमर नहीं रह सकता , 
आखिर मरना तो है ही । 
एक दिन इस दुनियां को छोड़ना तो है ही , 
लेकिन उस घड़ी , 
उस मुकाम,
और  उस कारण को भी कोई नहीं जानता । 
जिस जगह , 
जिस समय , 
जिस कारण से मरना है । 
यह सोंच कर सारी आशाएं निराशा में बदल जाती हैं । 
सारी ख्वाहिशें खत्म सी लगती हैं । 
सारी इच्छाएं कमजोर पड़ जाती हैं । 
दुनिया खाली खाली और वीरान सी लगने लगती है । 
सारे सुर संगीत रोने पिटने जैसी सुनाई पड़ने लगती है । 
मन को बहलाने या वक़्त को काटने का कोई रास्ता नहीं रहता लेकिन स्वयं से मर भी नहीं सकते , 
इस लिए उसी में आ कर डूबना और खोना पड़ता है 
जिसमें पुरी दुनियां डूबी और खोई है , 
लेकिन अपने ईमान और अपनी सच्चाई को बचाते हुए ।

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