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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

मेरी मुहब्बत की इन्तहा

ये एक अजीब विडंबना है या कि मेरी मुहब्बत की इन्तहा ।
अपने छोटे छोटे बच्चे अक्सर छोटे छोटे भाई नज़र आते हैं ।
मुहब्बत तो दोनों से बराबर ही है लेकिन जब यादाश्त कमजोर पड़ने लगती है , तो उसी बड़े , छोटे भाई का नाम मुंह से निकल पड़ता है । बचपन की यादें मरते दम तक नहीं जाती , मगर आज तक नहीं समझ पाया कि सब कुछ कैसे भूल कर किनारा कर लेते हैं लोग ।
जिस भाई ने अपनी उंगली पकड़ाकर चलना सिखाया था , और जिस भाई ने मेरी ऊंगली पकड़ कर चलना सीखा था जब दोनों की उंगलियां हमेशा के लिए छूट जाती हैं , तो मेरे जैसे एहसासमंद लोगों का , सिर्फ़ खाली जिस्म रह जाता है , मगर उसमें कोई जान नहीं रहती । तन्हाई , उदासी और खामोशी के काले बादल छा जाते हैं ।

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