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सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

धर्म का नाम आते ही लोग शांत क्यों हो जाते हैं ?

धर्म का नाम आते ही लोग शांत क्यों हो जाते हैं ?
या फिर बहुत ज्यादा बोलने लगते हैं ।
क्या धर्म लोगों को आकर्षित करता है ? या 
लोग धर्मों से आकर्षित होते हैं ?
पौराणिक मान्यताओं के आधार पर आस्था और विश्वास का यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है ।
इसी आस्था का , इसी विश्वास का , लाभ लेने के लिए कुछ ना समझ लोग , कुछ लोगों को उन्मादी बना देते हैं ।
उन्माद फैलाने वाले लोगों को धर्मों की कोई जानकारी नहीं है । इन्हें जो बता दिया जाता है । इन्हें जो समझा दिया जाता है , उसे मान लेते हैं , क्यों कि ये लोग परंपरागत तौर से आस्था वादी है । ये पुर्ण विश्वास कर लेने वाले होते हैं ।
इनमें कुछ पढे लिखे लोग भी हैं , और कुछ अनपढ़ भी हैं ।इन दोनों को धार्मिक जानकारी पढ़ कर लेने की जरूरत नहीं महसूस होती सिर्फ लोगों के द्वारा सुन कर मान लेते हैं , और विश्वास कर लेते हैं ।
इसे कहते हैं धर्म से आकर्षित होना और आकर्षित हो कर बधे रहना । शांत वही लोग होते हैं , जो लोग कुछ जानते हैं । या पूरी जानकारी रखते हैं ।
जो बहुत ज्यादा बोलने लगते हैं , वो ज्यादा लोगों से उन्मादी बातों को धर्म के नाम पर सुन- सुन कर अपने आप को ज्यादा जानकार समझ बैठे हैं ।
ऐसे लोगों को जब कोई ज्ञ्यानी मिल जात है , तो इन्हें पता ही नहीं चलता कि ये कौंन हैं ? उनकी सुनने के बजाय अपनी सुनाने लग जाते हैं , जैसे खुद ही महा ज्ञ्यानी हो चुके हैं ।
अंत में ऐसे लोगों से ज्ञ्यानी जी हाथ जोड़ कर छमा मांग लेते हैं , और बहुत ही साधारण शब्दों में यह कह कर उठ जाते हैं कि श्रीमन मैं ही ग़लत हूं , मैं अपनी हार मानता हूं , और आप की जीत हुई क्यों कि आप ज्ञ्यानी नहीं बल्कि महा ज्ञ्यानी हैं ।
कभी फुर्सत के वक़्त मिले , तो आप से ज्ञ्यान प्राप्त करने के लिए आप से अवश्य मिलेंगे । इतनी सी बातों में ही सुनी सुनाई ज्ञ्यान वाले अपनी खुशी में गदगद हो जाते हैं ।
मुझे लगता है , कि ऐसे धार्मिक लोगों की संख्या ज्यादा है ।
यही वजह है , कि ऐसे लोगों को उन्मादी बनाने में ज्यादा समय नहीं लगता । जो समझा देंगे जो सुना देंगे उसमें वे पूरी आस्था के साथ धर्म के नाम पर विश्वास कर के चल पड़ते हैं । जरूरत है लोगों को सही दिशा देने की जिससे सभी को गुडफील हो सके । आज कोई धर्म ख़तरे में नहीं है
न था और न रहेगा । ख़तरे में सिर्फ लोग हैं और हो सकता है कि तब-तक रहें जब-तक सभी धर्मों के लोगों को आदर और सम्मान पुर्वक समझने की कोशिश नहीं करेंगे ।
एक दूसरे को समझने से ही पता चलेगा कि कौंन सा धर्म किस धर्म के लोगों के लिए उन्माद का पाठ पढ़ा रहा है ।
इस अखन्ड भारत को ही मैं पूरे विश्व के रूप में देखता हूं
जहां सभी धर्मों के लोग बसते हैं । आस्था वादी भी हैं और नास्तिक भी हैं । विभिन्न प्रकार के त्योहार , विभिन्न प्रकार के परिधान , विभिन्न प्रकार के खान पान और विश्व के सारे मौसम । अखंड भारत का नागरिक विश्व के किसी भी कोने में किसी भी मौसम में अपने आप को जीवित रख सकता है। लोगों को चाहिए कि विश्व में जाकर अपने कल्चर और धर्म को फैलाएं , न कि एक ही तालाब में रहते हुए उस तालाब को अपने अधीन समझ कर अपना साम्राज्य समझ बैठें क्यों कि एक तालाब में बहुत सारे जीव जंतु होते हैं ।
ख़तरा सभी को एक दूसरे से बना रहता है चाहे छोटा जीव हो या बड़ा ।

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