जालिम तबाही बो रहे हैं हर तरफ ।
बम धमाके भी हो रहे हैं हर तरफ ।।
आने वाली मुश्किलों से बे खबर ।
कुछ लोग देखो सो रहे हैं हर तरफ ।।
बे गुनाहों के लहू से देखिये ।
लोग धब्बे धो रहे हैं हर तरफ ।।
कुछ लोग मजहब का लेबादा ओढ कर ।
अपनी अज़मत खो रहे हैं हर तरफ ।।
इन्सानियत जख्मों से जावेद चूर है ।
बच्चे बूढे रो रहे हैं हर तरफ ।।
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